चौराशी वैष्णवन की वार्ता | Chaurasi Vashnav Ki Varta

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Chaurasi Vashnav Ki Varta by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
(9०) चारा ही. | तीन वस्तु मांगी एकती मुखरताको दोष जाय दूसर | । मागेको सिद्धांत समझों तीसरे मेरे गुरूके घर । पघारो तामें दोय वस्तु दीनी यरूके घर पधारवेकी । | नाहीं कीनी बढुर बढ्रिकाश्रमते आगे पधारें जहां जीवक गम्य नाहा हे तहां वेदव्यासजाकां स्था है तहां पधारे तब कृष्णदाससों कह्यौ जो तू ठाडो | रहियो तब श्री आचायजी महाप्रशू आगे पधारे | तब वेदव्यासजी साम्दे आये सो श्रीआचायजी । महाप्रझननकों अपने घाममें ठे आये पाछें वेदव्या । सजीने श्रीआचायजी महाप्रश्ननसों कहो जो. | तुमने श्रीमागवतजीकी टीका कीनी है सो मोको | सुनावो तब श्रीआचायजी महाप्रभूनने जुगठभी- | |. सो छोक़-वामबाइुकृतवामकपोठोवडितरश्ूधरापिं तवेणुं कोमलांगुलिनिराश्रितमागंगा प्यइरयतियत्रमु झन्दः ॥3 | | सम्प्रणभया तब वंदव्यासजीने बीनती करी जो मैं | या भागवतके _व्याख्यानकी अब धारना कार सृकत नाहां तातें अब क्षमा करो पाछें श्रीआचा- | यजी महापम्भूनने वेदव्यासजीसों कहो जो तुम | वेदांतके ऐसें सूत्र कहा कीये जो वादप




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now