वेदकाल निर्णय | Vedkal-nirnaya

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Vedkal-nirnaya by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(७ ) निद्श मूलक गणना यदि अयनांश ( £?८८४५५'०ा )जोड़ कर की गई है तो उस गणना को सायन गणना कहते हैं छोर यदि विना जोड़े की गई है तो उसे निरयण गणना कहते हैं । किसी 'झाकाशीय बिन्दु का निर्देश केवल क्रान्तिवृत्त के छनुसार भी किया जा सकता दै। यदि दोनों कदस्बों झौर 1नर्दश्य स्थान पर से होता हुआ तथा क्रान्ति वृत्त को समकोग पर काटता छुआ वृत्त खोंचा जावे तो इस वृत्त का वह झंशात्मक भाग जो क्रान्ति बृत्त ओर उस निर्देश्य स्थान के बीच में है। शर १ 1 .द६100०८ ) कहलाता है और सम्पात बिन्दु अथांत्‌ मेष राशि के आदि बिन्दु से उस वृत्त तक जितनी अंशात्मक दूरो है उसे देशान्तर ( 1.301076 ) कहते हैं। इस प्रकार अक्षांश ओर देशा- न्तर के निद्श से किसी भी आकाशीय बिन्दु का निर्देश क्रान्ति बृुत्त के अनुसार किया जाता है | मेष राशि के प्रथम बिन्दु के पीछे सरकने का कारण १८५० सन्‌ में जनवरी की प्रथम तारीख के दिन ध्रव तारे के उभयसुज ( (८०-०९०0#1«४४ ) मालूम किये गये तो घ०. .. मि० से० विषुवकाल प्‌ २६ क्रान्ति + ८८ ३०' ४५९” हुए । उसी भ्रव तारे के उभयभुज ५० वबष पश्चात्‌ सन्‌ १९०० की जनवरी के प्रथम दिन में भी लिए गये तो घर मि० से विघुवकाल श पड) ० ं आन्ति ८८ ४६' ५३” हुए ।




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