काव्य शिक्षा सटीक | Kavya Shiksha Satik
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
78 MB
कुल पष्ठ :
263
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नह
श्र काव्य शिक्षा !
रावत!
जन दृत्तों के आदि में जगख, रगण, सगण शर तगस हैं वे निर्दोष बन |
चहीं सगे । हां ! जहां तक हो से संगल बाची शब्दों में ही भुखित ं
| किये जानें तो श्र उत्तम है । यदि ऐसा नियम न सथ सके तो कोई |
हासि सी नहीं । परन्तु साचिक दन्दों में भी संगल बाची श्र देव बाथी |
| शब्दों तथा देव कथाओं के प्रसंग में दग्घाझर वा गणागण का दोष सहीं ं
| सामना जाता । कहा है एक प्राचोन कखि से- न
दो८-इहां प्रयोजन गण गण, श्र द्रिगण को काहि ।
एके गुण रघुबीर गुण, ब्रिगुश जपत हैं जाहि ॥
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पाठ ६
संख्या सुचक शब्दा: ।
काव्य में जहां कहीं संख्या दूशाने का काम पढ़ता है वहां कवि जन |
| प्रायः संख्या सूचक शब्दों का ही प्रयोग किया करते हैं, अतः ने शब्द |
| संसेपतः नीचे लिखे जाते हैं ।.
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दो6-व्येशस शून्य कहि चन्द्र इक, दोय पद्म भुज नेन ।
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अधि काल पुनि ताप अय, चिगुण राम शिव नेन ॥९॥
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पाद वेद यंग चार फल, वर्ण अवस्था चार ।
मुख बिरचि के चार हो, सश्रस चार लिचार ॥२॥
कन्या इन्द्रो शंभू मुख, पांचे कहियत बान ।
यज्ञ भूत गति पांच ही, पांडव पांचे मान ॥३॥
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राग शास्त्र झलपद ऋतु, रस बेदांग छ ख्यात ।
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मुनि सागर स्वर लोक गिरि, झश्व बार सच सात ॥४॥
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