काव्य शिक्षा सटीक | Kavya Shiksha Satik

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Kavya Shiksha Satik by सेवक - Sevak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नह श्र काव्य शिक्षा ! रावत! जन दृत्तों के आदि में जगख, रगण, सगण शर तगस हैं वे निर्दोष बन | चहीं सगे । हां ! जहां तक हो से संगल बाची शब्दों में ही भुखित ं | किये जानें तो श्र उत्तम है । यदि ऐसा नियम न सथ सके तो कोई | हासि सी नहीं । परन्तु साचिक दन्दों में भी संगल बाची श्र देव बाथी | | शब्दों तथा देव कथाओं के प्रसंग में दग्घाझर वा गणागण का दोष सहीं ं | सामना जाता । कहा है एक प्राचोन कखि से- न दो८-इहां प्रयोजन गण गण, श्र द्रिगण को काहि । एके गुण रघुबीर गुण, ब्रिगुश जपत हैं जाहि ॥ गा रे श « जा पाठ ६ संख्या सुचक शब्दा: । काव्य में जहां कहीं संख्या दूशाने का काम पढ़ता है वहां कवि जन | | प्रायः संख्या सूचक शब्दों का ही प्रयोग किया करते हैं, अतः ने शब्द | | संसेपतः नीचे लिखे जाते हैं ।. ड दे य कि बि, दो6-व्येशस शून्य कहि चन्द्र इक, दोय पद्म भुज नेन । पे अधि काल पुनि ताप अय, चिगुण राम शिव नेन ॥९॥ पे पाद वेद यंग चार फल, वर्ण अवस्था चार । मुख बिरचि के चार हो, सश्रस चार लिचार ॥२॥ कन्या इन्द्रो शंभू मुख, पांचे कहियत बान । यज्ञ भूत गति पांच ही, पांडव पांचे मान ॥३॥ ही पद हु ् राग शास्त्र झलपद ऋतु, रस बेदांग छ ख्यात । 9 मुनि सागर स्वर लोक गिरि, झश्व बार सच सात ॥४॥ टी ग डे की शा डर ट् [ 1 ्म अ श श मिटसवसिएपसटपटसवएटएपटरवटसपवययरपसजवयवययवथनलन......................... रे सा न ननसतवलनातन लिन वनलनसिननिननलनलनननकनननि्िििििित कम्न्नभतसम्वव्




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