संचयिता | Sanchayita

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Sanchayita by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कल-कल,छल-छुल, शोशित उष्ण, अधीर; अस्थि, सांस, सजा जिसका एक तार हूँ, : बजती वही विश्व-वीणा विराट सुवन-भुवन में दिवा-रात्रि निबाध, ये तार मिक्ष, पर पिच: नहीं -स्वर; राग एक, उँगलियाँ एक ही, और एक ही वादक, . चिरमादक | बे. . हाँ, तो यह मेरी-पुस्तक का प्रथम पृष्ठ है; « और, कॉँप्रता मेरा कर, थर-थर . | श्राज़, लेखनी रही सिहर / लिख न सकूँगा । बाहु-पाश, में खींच रहा सौन्दय मुभे, रो वर्चेमान के कलाकार, : रच, रच | . नूतन युग में -न्वल सृष्टि / कर ध्वंस पुरातन, निर्मय हो मेरा वन्दन या, कह मेरी जय / अौरसी और, वहीं से एक छीण स्वर उठता हैं, बच, बच / हतभाया सानव, मरु की सुगठष्णा से / इतने में सच, सच . कहता कौन युकार एक ही बार, आत्या में, यह किस द्रोही का हुहुंकार कया वही सत्य है ? कर न सकोंगे क्षमा मु्े कया ? नहीं 2 सावसौम कवि, है सुत्दर / उचित नहीं- यह श्रक्सर | रद के सें देख रहा, मेरे श्रागे जो फैल रहा है इतना पथ वामन-पद-सा; और, क्षुद्र यह मेरे लघु जीवन का रथ | जिसमें जुते अश्व मेरी युग-युग की कांक्ताओओं के इलथ / मैं प्यासा हैं; युग से जीवित,




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