गाँवों की समस्याएँ | Ganvon Ki Samasyaen

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Ganvon Ki Samasyaen  by श्री शंकरसहाय सक्सेना - Sri Shankarsahay Saksena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गाँवों की ओर ]] ड सकता है । कल्पना कीजिये शहर के रहने वाले एक मऊदूर की जा एक कारखाने में काम करता है. यदि वह अपनी स्त्री श्यौर बच्चों को कारखाने में काम करने के लिये नहीं भेज॑ंता तो उसके घर का खच नहीं चल सकता. श्रीर यदि वह उनको कारखाने में भेजता है ता यह आवश्यक नहीं है कि उसके स्त्री श्ौर -वच्चों को उसी कारेस्गने में काम मिल जावे । यदि भाग्ययश ऐसा हो भ जावे तो उसके बच्चे श्रौर उसकी स्त्री को उसके साथ काम करने का अवसर सहीं सिल सकता । यदि यह बात छोड़ भी दी ज।धे तो भी चच्चों और स्त्रियों के स्वास्थ्य पर कारखानें के जीवन क बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। इसके विपरीत खेती में इतने विभिन्न प्रकार के कार्य करने पटते हैं कि पुरुष, ख्री, बच्चे और बूढ़े सभी अपने '्नुकूल काम पा सकते हैं, श्गौर उस कार्य से उनके स्वास्थ्य तथा सार्नायाक विकास को हानि पहुँचे के स्थान पर लाभ पहुँचता है । यहाँ कारण है कि रों में विवाह शहरों की अपेक्षा कम उमर में होता है और प्रत 5 युवक और युवती विवाह करता | क्योंकि गाँवों में बच्च छुटुम्ब के लिए भाररवरूंप नहीं होते । यही कारण है कि गावो ४. »स.क पुरुप एक समद्धिशाली बड़े कुट्टम्च के निमाणु करना चाहता है । शहरों में अपेक्षा कृत छोटे कुट्टम्ब निर्माण करने की भावना अधिक बलबती होती है । जिस देश में समृ/द्शाली कुट्म्ब के निमाण की भावना काम नहीं करती उस देश का पतन शअवश्यम्भावी है। गाँवी में रहने वालों की स्वभावत: यह शाकांक्षा दोती है कि वे एक सम्रद्धिशाली कुदुम्ब का निर्माण करें, यही नहीं गांवों में इसके लिये अनुकूल परिस्थिति भी मिलती है। शुहदरी जीवन मनुष्य के जीवन तथा उसकी का्यशक्ति को चीख करने बाला होता है । यद्दी कारण है कि गाँवों के कुद्ुम्बों




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