परमार्थ - प्रसंग | Paramarth Prasang

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Paramarth Prasang by स्वामी विरजानन्द - Swami Virajanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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माकथन नािरइकनीाणनणिण प्रस्तुत पुस्तक के लेखक का आप्यात्मिक और अच्छे अर्थ में सांसारिक अनुभव विशाल रहा है | श्रीरामक़र्ण मठ तथा उसके बहुव्यापी, जनहदितिकारी मिद्दन के सर्वाध्यक्ष होने के नाते स्वामी विरजानन्दजी धर्मांचाये के समान तत्वोपदेश देने के अधिकारी हैं । दूसरी दृष्टि से स्ोज्ञीण दिक्षा ओर सामाजिक उन्नति की योजनाओं के परिचाठक होने के कारण भी वे अपना मत देने की पात्रता रखते है | इसछिये ; दोनों दष्टियो से ही उनकी बातें प्रमाण-योग्य है । फिर, ये उपदेश सिफे संन्यासियों को लक्ष्य करके नहीं दिये गये दे, सब श्रेणियों की नर-नारियों को उद्देय्य करके ही दिये गये हैं । हो, यह बात ठीक है कि ' परमाथ प्रयंग * मुख्य रूप से हिन्दू जन-सधघारण के लिये लिखा गया दे-- ठीक उसी तरह जिस तरह पाथश्चात्य देशों में इंसाइ-भाव से जिन पाठकों का जीवन गठित होता दे, उनके लिये वह ग्रंथ-रचना होती है | लेकिन ऐसा होने पर भी कोई यथार्थ ज्ञानान्वेषी पाइचात्य पाठक इस पुस्तक के पढ़ने से नित्रत्त न हो; क्योंकि जगत के श्रेष्ठ मतवाद और अनुष्रान- प्रणालियोँ भी सावभीम आध्यात्मिक सत्य के अनन्त विस्तार की तुढ्ना में छोटी-छोटी सीमाबद्ध अभिव्यक्तियाँ मात्र हैं | वस्तुतः, जब किसी सम्प्रदाय का व्यक्ति दूसरे सम्प्रदाय की




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