जैन भजन संग्रह | Jain Bhajan Sangrah

लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
92
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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चौबीस तीथ॑ करों के भजन
१८--राग कालकडा (श्री अपभजनाथ)
अबतों सखी दिन नीके आये, आदीश्वर लीनो अवतार ॥रटेक
सरवारथ सिद्धिवें चय आये, मर्देवी माता उरधार ।
नामि चूपति घर बटत बधाई, आज अयोध्यानगर मदर ॥ १ ॥
खुखम दुखम में तीन वरष, अरु शेष रहे वसुमाल अवार |
अबतो जाग जाग मोरी आली, हिल मिल गाव मंगलवार ॥ २ ॥
पुण्य उदयते नर भवपायो, अर पायो उत्तम कुलसार।
थम तीर्थ करता गुरु पायों, अब कटि हैं सब कम विकार ॥ ३ ॥
स्वयंबुदध पूरण परमेश्वर, मोक्ष पंथ दसांचन हार ।
नयनसुख्य मन वचन कायकरि, नम नमुवसु अज् पसार ॥ ४ ॥
१8....रागनी मेरवीं (श्रीश्नजितनाथ)
अजित कथा सुनि हष॑ भयोरी ॥ टेक ॥
चिजयधिमान त्याग के प्रभुजो, जेठ अमावस आनिचयोरी ।
माघ सदी द्शमी नवमी क्. जनम तथा जग त्याग कियोरी ॥१॥
जित रिपु तोत मात घिजयादे, नगर अयोध्या दरस दियोरी ।
जाके चरण चिह्द गजपति को, ढोंच शतक तन तुझ्ठ थयोरी ॥२॥
छाख वहतर पूरवआयू , इन्द्र ने पांच उछाव कि के
पोष झुक ऐकादशि अधसर, सकल चराचर ! बोध भयोरी ॥ ३॥
मघुलित पांच कू शिवपाई, भवि अन्त उद्औार कियोरी ।
हगसुख तीन काठ तिहुँजग में, सो जिनवर जेवन्त जयोरी ॥ ४॥
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