जैन भजन संग्रह | Jain Bhajan Sangrah

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Jain Bhajan Sangrah by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ११ | चौबीस तीथ॑ करों के भजन १८--राग कालकडा (श्री अपभजनाथ) अबतों सखी दिन नीके आये, आदीश्वर लीनो अवतार ॥रटेक सरवारथ सिद्धिवें चय आये, मर्देवी माता उरधार । नामि चूपति घर बटत बधाई, आज अयोध्यानगर मदर ॥ १ ॥ खुखम दुखम में तीन वरष, अरु शेष रहे वसुमाल अवार | अबतो जाग जाग मोरी आली, हिल मिल गाव मंगलवार ॥ २ ॥ पुण्य उदयते नर भवपायो, अर पायो उत्तम कुलसार। थम तीर्थ करता गुरु पायों, अब कटि हैं सब कम विकार ॥ ३ ॥ स्वयंबुदध पूरण परमेश्वर, मोक्ष पंथ दसांचन हार । नयनसुख्य मन वचन कायकरि, नम नमुवसु अज् पसार ॥ ४ ॥ १8....रागनी मेरवीं (श्रीश्नजितनाथ) अजित कथा सुनि हष॑ भयोरी ॥ टेक ॥ चिजयधिमान त्याग के प्रभुजो, जेठ अमावस आनिचयोरी । माघ सदी द्शमी नवमी क्‌. जनम तथा जग त्याग कियोरी ॥१॥ जित रिपु तोत मात घिजयादे, नगर अयोध्या दरस दियोरी । जाके चरण चिह्द गजपति को, ढोंच शतक तन तुझ्ठ थयोरी ॥२॥ छाख वहतर पूरवआयू , इन्द्र ने पांच उछाव कि के पोष झुक ऐकादशि अधसर, सकल चराचर ! बोध भयोरी ॥ ३॥ मघुलित पांच कू शिवपाई, भवि अन्त उद्औार कियोरी । हगसुख तीन काठ तिहुँजग में, सो जिनवर जेवन्त जयोरी ॥ ४॥




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