प्रयोग-सहस्त्री | Prayog-sahastri

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Prayog-sahastri by रामदेव त्रिपाठी - Ramdev Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२४६ प्रयोग-साहस्त्री । 1 भ्० २--गुलर का सुरब्बा । हर गूलर के कच्चे फल * सेर. शकर २॥ सेर ३ विधि--१ सर पानी में फलों को उबाले ।. कछ पक जाने... पर इसी जल में शकर मिलाकर चाशनी बनाये । शहद की तरह चाशनी बन जाने पर गूलर के फतं को इसी चाशनी में मिलादे। ८ दिन के बाद काम में लावे । मात्रा--१ से ३ तोला तक । समय--सुबह शाम । रोग-पेट की जलन, मूत्ररऊुच्छू, पेशाब की जलन | ५०३--अजीणहरीवटिका । मूली का स्वरस. 3। सेर. .. नवसादर ? सेर छोटी हरड़ 5... जोरा ड। झअझजवायन $। _ झजमोद डा म 'पको इसली का गृदा 51. _ कौड़ो की भस्म 5।. काली मिचें. 5 सेंघा नमक. +। अमलवेत 5 भूनी हींग... ६- _. विधि-सबको महीन पीसकर मिट्टी की हांडी में भरदे। ऊपर से झाक का दूध इतना भरदे कि सब दवा भीग जाय | इस हांडी को धूप में रखकर दवा खुखा ले और पीस कर कपड़े से छान ले। इतना हो जाने पर मूली की जड़ का _स्व॒रस निकाले । इस स्वरख में नवसादर डालकर अग्नि




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