तुलसी की जीवन भूमि | Tulsi Ki Jeevan Bhoomi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
68 MB
कुल पष्ठ :
323
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दे ढ
जैसोई रुचिर चारु चरिंत सियापतिं को;
तेसोई कढित कल काव्य तुलसी को है |
६ शरद शरद
अब लो सब नेम घम संजस सिराय जाते,
माता पिता बाछक को बेद न पढ़ावते |
आमिष अहारी बिभचारी होते भारी लोग;
कोऊ रघुनाथ जू की चरचा न चलावते ।
छूटि जाते नेम धर्म आश्रम के चारो बन;
ऐसे कलिकाल में कराल दुख पावते ।
होते सब कुचाली सी सुचाली भने 'महाराल',
जो पे कवि तुलसीदास भाषा न बनावते ॥|
६ न रद
उपमा अनेक घुनि भाव रस उक्ति जुक्ति;
छंद जौ प्रबंध सनबंध सिख देस काल |
ज्ञान योग भक्ति अनुराग आौं बिराग बिने,
नीति परतीति प्रीति रीति भीति जगजाल ।
लोक गति वेद गति चित्र गति पर गति
इस गति जति राम रति तति सति हाल |
तुलसी जू एते गायों रामायन “रघुराज',
बरस कीन्हों निज बस दसरथ लाल ||
शरद जद शद
यह खानि चतुष्फछ की सुखदानि मनूपम मानि हिये हुढसी ।
पुनि संतन के मन भऋगन को अति मंजुछ माल लसी तुख्सी |
पुनि मानुष के तरिवे कहूँ “तोप” मई मवसागर के पुल सी |
सब कामन दायक कामदुद्दा सम रामकथा बरनी तुढ्सी ॥
बा
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