भगवान बुद्ध | Bhagavaan Buddh

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Bhagavaan Buddh by पं शशिनाथ चौधरी - Pt. Shashinath Chaudhary

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भगवान बुद्ध रू? सीख चुके । गुरुजी ने राजा से साफ-साफ कह दिया- महाराज, अब मेरे पास ऐसा कोई भी शास्त्र अथवा विद्या नहीं है, जो में राजकुमार को बताउऊँ । सिद्धाथ ने साहित्य, व्याकरण, 'घमशास्त्र, ज्योतिष आदि शास्त्रों को पढ़कर तल- बार, तीर आर साला चलाना, हाथी और घोड़ों की सवारी करना, अच्छी तरह सीख लिया था । सिद्धाथ के एक सौतेछा भाई था, जिसका नाम नन्द था | उनका एक चंचेरा भाई भी था, जिसे लोग देवद्त्त कह- कर पुकारते थे । ये दोनों राजकुमार के साथ ही नदी-तट एर खेलने के लिए ज्ञाया करते थे । देवदत्त का स्वभाव अच्छा नहीं था । चह सिद्धाथ से द्रंघ रखता था । चह यह नहीं चाहता था कि लोग सखसिद्धाथ की प्रशंसा करें । चह जन्म-सर खिद्धाथ का राधा रहा | रोहिशी-नदी के किनारे एक बहुत बड़ा वृक्ष था । संयोग- वश बह नदी में गिर पड़ा । फल यह डुद्मा कि एक तरफ तो पानी बहुत बढ़ गया ओर दूसरी झोर जल कसने लगा । इससे लागों को बहुत कष्ट छुआ । पेड़ बहुत बड़ा था । लोगों ने उस नदी से बाहर निकालने का यत्न भी किया, परन्तु बह नहीं _ निकला । छोगों का दुम्ख सिंद्धाथ से देखा नहीं गया। वह नदी के तट पर से ही वृक्ष की जड़ को खींचकर बाहर ले झाये । सब कोई उनको इसके लिए आशोचाद देने लगे और उनकी प्रशंसा करने लगे। ऐसे तो वह वीर थे ! एक दिन सिद्धाथ और देवदत्त एक साथ फुलवाड़ी की




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