भारत में सिन्धी पत्रकारिता | Bharat Maine Sindhi Patrakarita
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
118
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पत्रकारिता का विकास एवं प्रारम्भिक युग 1
जनता के दिलों में स्वतंत्रता की आग फूंक दी-और अब आता है वर्ष 1867 से 1900
तक का-
भारतेन्दु युग
इस युग को साहित्यिक एवं राजनैतिक समाचार पत्रों का मिश्रित सुग कहां जाय
तो अनुचित न होगा । इस सुनहरे दौर का प्रारंभ होता है 15 अगस्त, 1867 को काशी
से भारतेन्दु हरिशचन्द्र द्वारा निकाली गई *कवि सुधा वचन' पत्रिका से । इस पत्रिका
के बारे में डॉ. रामविसाल शर्मा का कहना था कि “कवि सुधा वचन' का प्रकाशन
करके भारतेन्दु ने वास्तव में एक नए युग का सूत्रपात किया है। इस पत्रिका का नाम
सन् 1875 में 'सुधा' साप्ताहिक हो गया था । इस युग मे अलग-अलग समय पर निकली
पत्रिकाओं आदि में हरिशचन्द्र मेग्जीन, बालबोधिनी, धर्मामृत, जैन प्रकाश, हिन्दू प्रकाश,
मित्र विलास, भारत मित्र, आनन्द कादम्बिनी, बिहारबंधु, ज्ञानचन्द्र, हिन्दी दीप्ती, प्रकाश,
आर्यमित्र आदि पत्र-पत्रिकाओं के नाथ गिनाए जा सकते हैं ।
भारतेन्दु युग में जहाँ पाठकों को पत्र-पत्रिकाओं में साहित्यिक, सामाजिक आदि
रचनाएँ पढ़ने को मिला करती थीं तो वहीं उत्तर प्रदेश से 1885 में रामपाल भाटी द्वारा
“दैनिक हिन्दोस्तान' प्रकाशित किया गया । यह एक मर्यादित राष्ट्रवादी समाचार पत्र
था जो जनभावनाओं को व्यक्त करने वाला विचारपूर्ण लेखो से भी सम्पन्न था तथा
'वर्ष 1890 में हिन्द बगवासी ' पत्र निकली । इस काल में लोकमान्य तिलक का नारा
*स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम इसे लेकर रहेंगें' के उद्देश्य से निकले
पत्रों में से *केसरी' और “मराठा' की भूमिका भी इतिहास के पक्नों में स्वर्ण अक्षरों
से लिखने योग्य है ।
'वर्ष 1867 से लेकर 1900 तक का पत्र-पत्रिकाओं का ऐसा दौर था, जिसमें सामाजिक,
साहित्यिक तथा राजनैतिक ही नहीं बल्कि जातीय एवं साम्प्रदायिक मतों का भी प्रचार
'करने वाली अनेकानेक पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित हुई । अब आता है वर्ष 1900 से लेकर
1920 का--
द्विचेदी युग
इस युग का प्रारंभ किया था वर्ष 1900 में महावीर प्रसाद द्विवेदी ने “सरस्वती
का प्रकाशन करके । सरस्वती ने हिन्दी पत्रकारिता के स्तर को जहां ऊंचा उठाने में
कसर न छोड़ी तो वहीं इसी काल में राजनैतिक संघ॑पशील पत्रों ने भी अग्रेजों के खिलाफ
झंडा नीचे नहीं होने दिया । भारतीयों में राष्ट्रीय चेतना जागृत करने वाले 1881 में
सूना से प्रकाशित ' केसरी' के, वर्ष 1890 में जहां लोकमान्य तिलेक पूर्ण सम्पादक बने
थे तो वहीं इस युग में अन्य निकलने वाले पत्रो में अभ्विका प्रसाद वाजपेयी द्वारा वर्ष
1907 में कलकत्ता से निकाला गया था-'नृसिंह' । शातिप्रसाद भटनागर के सम्पादष
में निकाले गए' स्वराज्य' इलाहाबाद से पंडित मदन मोहन मालवीय द्वारा प्रकाशित ' अभ्युदय*
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