शोधयात्रा | Shodhayatra

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : शोधयात्रा  - Shodhayatra

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
वुद्ध और उपनिषदों तक और वायविल, कुरान से लेकर भगवदूगीता तक-सवकुछ मानों सूखे पाषाण से निकलकर गुजर गया है। दरिद्रता, दुःख, दैन्य, आदिवासी झुग्गी-झोंपड़ियों का जनजीवन, मरण, क्लेश, प्रेम आदि से मैंने कुछ नहीं सीखा । और इस राक्षसी, मारकाट के व्यवसाय से भी जीवन के वारे में कुछ समझ नहीं पाया। व्यर्थ है यह जीवन और यह शरीर। यह सव निर्रर्थक है। वह समुन्दर की दीवार के और भी क़रीव जा पहुँचा । “ओए'मरना चाहता है क्या ? पीछे हट”“हट पीछे। ” रेन कोटधारी पुलिस दूर से चिल्लाया। श्रीधर ने मुड़कर देखा । उसे संशय की दृष्टि से घूरता हुआ वह पुलिसवाला उसके क़रीव आने लगा और उसके चेहरे के भाव वदलने लगे । क्रीम की पॉलिश से चमकते हुए श्रीधर के क़ीमती जूते, महँगे सुरुचिपूर्ण कपड़े, कलाई पर वँधी विदेशी घड़ी, उसका वर्ण और वर्ग वतानेवाला साफ-सुथरा चिकना-चुपड़ा चेहरा-इन सबको देखकर पुलिसवाला झेंप कर वोला- “माफ करना साहव, यहाँ वहुत खतरा है। देखिए न, पानी कितना ऊपर आ रहा है। और ज़ोर से अगर कोई वड़ी लहर आये तो वस खींचकर ले जाएगी अन्दर। इसीलिए चिल्लाया”””' श्रीधर के वदन पर रोंगटे खड़े हो गये। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह यहाँ क्यों आया है। उसने उफनते हुए समुन्दर को देखा। लग रहा था कि अपनी असहा वेचैनी से पीड़ित और बहुत सन्तप्त होकर वह उमड़-उमड़कर उठ रहा था। श्रीधर को समुन्दर से बहुत लगाव था। वेचैनी के क्षणों में वक़्त-वेवक़्त समुन्दर किनारे जा वैठना उसकी आदत थी। लहरों का गूढ़ खेल देखकर, सागर की भव्यता, गहराई और सामर्थ्य का अनुमान लगाते हुए वह उससे एकात्म हो जाता था। लेकिन वह तो वहुत पुरानी वात थी। जैसे-जैसे उसकी जिम्मेवारियाँ वढ़ने लगीं और समय का अभाव होने लगा, समुन्दर के साथ उसकी मुलाक़ातें कम होती गयीं। गाड़ी से आते-जाते या विमान से उड़ते हुए दृष्टि पड़ जाती या फिर कभी-कभार किसी को साथ लेकर अगर वह किसी समुन्दर-किनारे छुट्टी के दिनों में आराम करने जाता तो पानी में दूर तक घुस जाता था। तव तो उसे वहाँ से बाहर निकालने में लोनां थक जाती थी। श्रीधर के समुन्दर के प्रति पागल प्रेम का लोन को हमेशा डर लगता था। विनू डरती तो नहीं थी लेकिन पिछले दो वर्षों से ऐसा कोई मौक़ा ही नहीं आया था। समुन्दर के वारे में सोचने तक की फुरसत नहीं थी। लेकिन फिर आज अचानक वह सव महत्त्वपूर्ण काम छोड़कर वह यहाँ किसलिए आया था ? सिर्फ़ समुन्दर का खेल देखने ? आत्महत्या करने ? असम्भव। सच, ऐसा क्या हुआ है शबाना: 19




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now