उपनिषदों के चौदह रत्न | Upanishadon Ke Chaudah Ratn

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Upanishadon Ke Chaudah Ratn by हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

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He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अनोखा अतिथ्रि है पूर्णाइति होनेपर परम श्रद्धाते ऋत्विकृगणकों दक्षिणा बाँट्ते हैं । आकांक्ारहित होकर साच्विक यज्ञकर्ता वेदविधिका पूर्णतया पाठन करते हुए समस्त कार्य सम्पादन करते हैं । ऐसे पत्रिन्न युगमें ऋषि चाजश्रवाके सुपुत्र उददालक मुनिने विश्वजित, नामका एक यज्ञ किया । इस यन्नमें सर्वर दान करना पड़ता है । तदचुसार वाज- श्रवस ( बाजश्रवाके पुत्र ) उद्दाठकने भी 'सर्ववेदस ददौ'--अपना सारा घन ऋषियोंको दे दिया । ऋषि उद्दालकके नचिकेता नामक एक पुत्र था । जिस समय ऋषि क्रतिज और स्दस्योंकों दक्षिणा बाँठ रहे थे और उसमें अच्छी-बुरी सभी तरहकी गौएँ दी जा रही थीं उस समय बालक नचिकेताके निर्म अन्तःकरणमें श्रद्धाने प्रवेदा किया । नचिकेताने अपने मनमें सोचा-- पीतोदका जग्धदणा डुग्घदोद्दा निरिन्द्रिया। 1 अनन्दा नाम ते ठोकास्तान्‌स गच्छति ता द्द्तू॥ (कठ० १1१1३) 'जो गौएँ ( अन्तिम बार ) जठ पी चुकी हैं, घास खा चुकी हैं और दूध दुद्दा चुकी हैं; जो शक्तिह्दीन अर्थात्‌ गर्भ धारण करनेमें असमर्थ हैं, ऐसी गायोंको जो दान करता है वह उन छोकोंको प्राप्त होता है जो आनन्दसे शून्य है ।' यक्नके बाद गौदान अवश्य होना चाहिये, परन्तु नहीं देने योग्य गौके दानसे दाताका उछठा अमज्ञछू होता है । इस प्रकारकी भावनासे सरल्हदय नचिकेताके मनमें बड़ी वेदना हुई और अपना वढ्दान देकर पिताका अनिष्ट निवारण करनेके छिये उसने कहा-- तत कस्मे मां दास्यलीति ।




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