आर्य मन्तव्य दर्पण | Aarya Mantavya Darpan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
120
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ईश्चर का लक्षण दें
स्था में हे इन सच में जो ( झुवत् ) वर्तमान हे; ( तत् ) चही ( पथि-
वीं विदवरूप॑ं दाधार ) एथिदी छोर युठोक को आधार देता है, मलय-
में ( तद् संभूय ) वह शर्म सबके साथ मिछकर ( एक एव भवति 9
पुक ही होत्ता है, जर्थाद् जीव और मकृति ऐसी अवस्था से हो जाते हैं
जय केचल सच पद से कहे जाने योग्य ही रद्द जातें हैं 1 यद्दी जीच आर
नम की एकता हू ।
शिक्षाः--देश्वर चेतन हे, जढ़ घस्तु इंश्वर नददीं हो सकती हैं । सब लडः
जगत् का सी लाधार चेतन इश्वर है. और चह. आधार भूत '
घ्रद्म एकह्ी है 1 न
रे. अद्धितीय ईश्वर
स नः पिता जनिता स उत वन्घुर्धोमानि वेद शुवनानि विद्चा।
यो देचानां नामघ एक एव त॑ से धन सुचना यन्ति खची ॥
गधथवे० श्य३॥
झाव्दाथे--( सः ) बद्दी इंखर ( नः पिता ) मारा पाठक झार
( जनिता ) उत्पादक दया ( चन्थुः ) बन्घु है, वही ( विश्वा झुवनानि )
संपूर्ण भुवनों को तथा ( घामानि ) स्थानों को ( चेद ) जानता हे ।
त्तवा ( यः ) जो ईश्वर ( एक पुव ) अकेा ही ( देवानां नामघः- 7
देवों के नम धारण करने वाला है 1 ( लें संग्रइन 0 उसी पूछ ताछ
करने योग्य ईश्वर के प्रति ( अन्या भुवना ) सब अन्य झुवन (से यन्ति)
मिलकर जति हैं ।
शिक्ता:--चदद डेश्वर सबका साता पिता आर माई है । उसी की धक्ति:
सब देवों से विराजती हे इसलिए अधि आदि अन्य देवों
छे सचनाम उस ईश्वर के लिए अयुक्त होते हैं । चदद ईश्वर तो,
एक अद्वितीय है ।
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