आर्य मन्तव्य दर्पण | Aarya Mantavya Darpan

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Aarya Mantavya Darpan by ईश्वरदत्त मेधार्थी - Ishvaradatt Medharthi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ईश्चर का लक्षण दें स्था में हे इन सच में जो ( झुवत्‌ ) वर्तमान हे; ( तत्‌ ) चही ( पथि- वीं विदवरूप॑ं दाधार ) एथिदी छोर युठोक को आधार देता है, मलय- में ( तद्‌ संभूय ) वह शर्म सबके साथ मिछकर ( एक एव भवति 9 पुक ही होत्ता है, जर्थाद्‌ जीव और मकृति ऐसी अवस्था से हो जाते हैं जय केचल सच पद से कहे जाने योग्य ही रद्द जातें हैं 1 यद्दी जीच आर नम की एकता हू । शिक्षाः--देश्वर चेतन हे, जढ़ घस्तु इंश्वर नददीं हो सकती हैं । सब लडः जगत्‌ का सी लाधार चेतन इश्वर है. और चह. आधार भूत ' घ्रद्म एकह्ी है 1 न रे. अद्धितीय ईश्वर स नः पिता जनिता स उत वन्घुर्धोमानि वेद शुवनानि विद्चा। यो देचानां नामघ एक एव त॑ से धन सुचना यन्ति खची ॥ गधथवे० श्य३॥ झाव्दाथे--( सः ) बद्दी इंखर ( नः पिता ) मारा पाठक झार ( जनिता ) उत्पादक दया ( चन्थुः ) बन्घु है, वही ( विश्वा झुवनानि ) संपूर्ण भुवनों को तथा ( घामानि ) स्थानों को ( चेद ) जानता हे । त्तवा ( यः ) जो ईश्वर ( एक पुव ) अकेा ही ( देवानां नामघः- 7 देवों के नम धारण करने वाला है 1 ( लें संग्रइन 0 उसी पूछ ताछ करने योग्य ईश्वर के प्रति ( अन्या भुवना ) सब अन्य झुवन (से यन्ति) मिलकर जति हैं । शिक्ता:--चदद डेश्वर सबका साता पिता आर माई है । उसी की धक्ति: सब देवों से विराजती हे इसलिए अधि आदि अन्य देवों छे सचनाम उस ईश्वर के लिए अयुक्त होते हैं । चदद ईश्वर तो, एक अद्वितीय है ।




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