कुन्दकुन्दाचार्य के तीन रत्न | Kundakundacharya Ke Teen Ratn

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Kundakundacharya Ke Teen Ratn by लक्ष्मीचन्द्र जैन - Laxmichandra jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उपोदूघात १७ हो गया है। स्कन्द अर्थात्‌ कातिकेय शिवके कुमार थे । अतएव इन दोनों नामोमें कोई खास भेद नहीं रहता । पत्लवोंकी राजघानी कोंजीपुर थी और वे विद्या तथा दिद्वाचोंके भाश्रयदाता थे, ऐसी उनकी छ्याति है । इसके अतिरिक्त कॉजीपुरमुके शिवस्कन्द वर्मा राजाका एक दातनपण मिलता है । वह प्राकृतभापामें है और उसके आरम्भ 'मिद्धमू' शात्द हु। इससे वह राजा जैन था, यह कल्पना की जा सकती है । इसके सिवाय अन्य अनेक प्रमाणोंसे सिद्ध किया जा सकता है कि उसके दरवारकी भाषा प्राकृत थी । अतएव कुन्दकुन्दाचार्यने उस राजाके लिए अपना ग्रन्थ लिखा है, यह माना जा सकता है । पत्लवराजाओंकी वंशावली मिलती तो है, फिर भी यह निश्चित नहीं कि शिवकुमार किस समय हुआ हूैं। अतएव कुन्दकुन्दाचार्यका कालरनिर्णय करनेमे इस तरफ़से हमे कोई सहायता नही मिलती । परन्तु इतना तो अवद्य कहा जा सकता हैं कि बहुत सम्भव है, पट्रूववंशका कोई राजा कुन्दकुल्दाचार्यका शिष्य रहा होगा । श्रीकुन्दकुन्दाचायेके लात कुन्दकुन्दाचार्यके दूसरे नामोंके विपयमें बहुत-से उल्लेख मिलते है; और उन नामोंके आधारपर उनके कालनिर्णयम कोई सहायता मिल सकती हैं या नहीं, यह अब देखना चाहिए । 'पंचास्तिकाय' की टीकामे जयसेनका कहना हैं कि कुन्दकुन्दका दूसरा नाम पद्मनन्दी था । परन्तु चौदहवी झताब्दीके पीछेके लेखोमे कुन्दकुन्दके पाँच नामोका वर्णन आता है । जैसे विजयनगरके ई० स० १३८६ के एक शिलाछेखमें उनके पाँच नाम इस तरह दिये गये है - पद्मनन्दी, कुन्दकुन्द, वक्रप्रीव, एलाचायं और गूप्नपिच्छ । इनमे-से यह तो बहुत अंशोंमे निर्िवाद हैं कि कुन्दकुन्दाचायंका दूसरा लाम पद्मनत्दी था । इसी प्रकार यह भी नि्िवाद हू कि वक्रग्रीव और गूघपिच्छ, यह दोनो नाम उनके नहीं है, भूलसे उनके मान लिये गये है । गृघ्नपिच्छ तो तत्त्वार्थसूत्रके 'रचयिता




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