साहित्य की झांकी | Sahitya Ki Jhanki

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Sahitya Ki Jhaaki by डॉ वासुदेवशरण अग्रवाल

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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साहित्य की भाँकी भर धूचक उनमें से एक-एक चारी-चारी पर्चिय प्राप्त करने गया--इस कथा में यह स्पष्ट लिखा है कि प्रसिद्ध वैदिक देव उस श्रपूर्व तेजमय ज़ह्म से 'झनभिज्ञ थे वह उनके लिए एक नई वस्तु थी। वह उन्हें आश्चर्य में ढालने चाली थी, झतः उसका परिचय पाने की उन्हें उत्कण्ठा हुई । यह ब्रह्म था श्रीर उपनिपदों ने उसे खोजा । उपनिपदों की शिक्षा के विधान में 'घ्रप्त' को जानने की घिद्या अस्यन्त गोपनीय झऔौर रहस्यपूर्ण समभझ्ी गई है । जगत के विभिन्न व्यापारों में व्याप्त वह 'एक' रूप, रेखा और नाम का विषय नहीं हो सकता । इसलिये वह स्थूल-बुद्धि से नहीं समझा जा सकता । सूदम- बुद्धि को श्रावश्यकता दे--वह सूदम खुद्धि जो शुद्ध हो, इस मायावी खंसार के कपलुप से दूषित नहीं । यह सूदम-बुद्धि भी उसका पूरा ज्ञान नहीं पा सकती क्योंकि वह केवल शान का विंपय नहीं । चह श्रनुभव किया जा सकता है | उसका अनुभव आनन्द-विभोर करने वाला है । व्तः सूदम-चुद्धि भी उस समय विभोहित दो जाती है, बह श्रपने को भूल जाती है । पीछे कुछ श्रनुमान से, छुछे उस श्रानन्द के संस्काराव- शेष से चह सूदम-ुद्धि श्पनी दूशा का ज्ञान प्राप्त कर सकती दै--उस एक का ज्ञान फिर भी नहीं पा सकती ! इसी कारण उपनिपदों में कहा गया दे कि उसे “न जानने वाला ही जानता दे । वह केवल अनुभव की चस्तु थी; वदद इृदय की चस्तु थी। चह भक्ति से दो शीघ्रता पूर्वक पायी जा सकती थी । “एकत्व' में दिसजित होने वाले कर्मों सें भक्ति का समावेश श्रवश्य हो जाता है । एक की ऐसी प्रधानता जो श्रसंख्य मानवीय सत्ताओं को छुझ ननाकर शपना प्रंथुत्व स्थापित करे, बिना उसके श्रापने विशेष डाकर्षण के नहीं शो सकती | यह श्राकर्षण हृदय को श्रमिभूत करता | दे। उसके सारे रस को निर्विविक श्पनी श्रोर खींच लेता दे--श्रौर .. भक्ति को उत्तेजना देता है |




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