पावन - प्रसंग | Pawan Prasang

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Pawan Prasang by मंत्री - Mantri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उस समय वे उत्तर प्रदेश की विधान-सभथा के सदस्य थी थे । लोगो के पास जमीन माँगने जाते तो झोली भर-भरकर लें आतें । कोई बावाजी से यह नही पूछता था कि आ्ापनें कितनी दी , क्योकि सभी जानते थे कि बाबाजी के पास सिवा विभूति के श्र क्या हो सकता हूं ! परतु बाबाजी को भ्रखरने लगा । विधान-सभा से कुछ रकम सिलती थी । उसीसे से कुछ रुपया बचाकर उन्होने जमीन खरीद ली श्र भूदान-यज्ञ में अपना हविर्भाग भी अर्पित किया । उनके इस उदाहरण ने श्रौरो को भी प्रेरणा दी । भूदान- आआ्दौलन के बाबाजी प्रमुख स्तभ हे । पुरी-सम्मेलन के बाद भूमि-क्रान्ति को सफल बनाने के लिए वे १६४५७ तक अखंड पद-यात्रा के सकल्प से निकल पड़े हे । हे हट 2 चिरगाँव का सत्संग आज चिरगाँव मे डेरा था । दो मील दूर तक श्रद्धेय दद्दा* सेकड़ो पुरवासियो को साथ लिये वावा को लिवा लेने आये थे । समूह मे सुश्री महादेवी वर्मा तथा कविवर “दिनकर भी थे । रास्ते भर कीतेंत-भजन का भ्रदूभुत आनन्द रहा । रू श्री मेंघिलीशरणजी गुप्त १३




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