मेवाड़ - विध्वंस | mevad - Vidhvans

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mevad - Vidhvans by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१७ ) भी परवाह स कर सामिमान फहरा रही है, क्या यदद केवल शत्रओं की लाल ाँखों को देखकर गिर जायगी ? ( थ्ावेश में ) यद कभी न होगा! जब तक इस दूद्ध की शस्थियों में प्रा है, जब तक मेवाड़ के सेवक गोविन्दुर्सिद की धमनियों के रुधिर में स्वर्गीय राणा के खाये हुए नमक का मिश्रण है, तब तक मेवाड़ का सिर कभी शत्र के सामने नव न दहोगा। जयसिंह जी, राणा को जाकर कह दो कि गोविन्दसिंद की 'ाँखें चाहे फूट जायेंगी, पर वह इनसे सम्धि-पत्र की शोर देखेगा भी नद्दीं । जय०--में ने छापका छाशय अच्छी तरद समक लिया है. सेनापति जी ! श्राप दी जैसे मेघाढ़ भक्तों के. कारण मेवाड़ का सिर ऊँचा खड़ा है । छाप दरवार में जा कर 'झापना श्ाशय निभंयता से प्रकट करें। हम सब सामन्त थापके साथ हैं । ( जाता है » ( पटारप )




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