हिंदी साहित्य में हास्य रस | Hindi Sahitya Me Hasay Ras

88/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Hindi Sahitya Me Hasay Ras by डॉ. बरसाने लाल चतुर्वेदी - Dr. Barasane Lal Chaturvedi

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about डॉ. बरसाने लाल चतुर्वेदी - Dr. Barasane Lal Chaturvedi

Add Infomation About. Dr. Barasane Lal Chaturvedi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
तक हास्य की महत्ता हेसना मनुष्य का स्वाभाविक लक्षण है। भोजन में विविध भांति के व्यजनों का समावेण होने पर भी यदि उसमें लवण का श्रभाव हो तो सारा भोजन सावष्यहीन, फीका वन जाता है उसी प्रकार जीचन में समस्त दैभवो: के होते हुए भी यदि हँसी का श्रभाव हो तो जीवन भार-स्वरूप वन जाता है । जीवन के श्रास्वादन के लिए परिमित हेसी थ्रावश्यक है। हँसी जीवन का विटामिन हैं। इसके विना जीवन-रस की परिपुप्टि नहीं । यदि मनुप्य श्रौर कुछ न सीख कर केवल हेंसना सीख ले--दूसरों को देख कर हँसना नही, श्रपने घ्ाप पर हूंसना--तो वह सहज ही समसार श्रौर घर-गृहस्थी के भार तथा दुप-्ककटों को केत सकता है । भ्र्रेज़ी के प्रसिद्ध लेखक “थेकरे' ने हास्यप्रिय लेखक की उपयोगिता के विपय में लिखा है-- हास्यप्रिय लेखक, श्राप में प्रीति, श्रनुकस्पा एवं कृपा के भादों फो जागृत फर उनको उचित श्रौर नियव्रित्त करता है। श्रसत्य दम्म तया फ़ृनिमता के प्रति घृणा श्रौर कमजोरी, दरिदो, दलितों श्रीर दुसी पुरुषों फे फोमल भावों के उदय फराने में सहायक होता है । हास्पप्रिय साहित्य सेवी निश्चय रुप से हो उदारशील होते हैं। चह तुरन्त ही सुख दुख से प्रभावित हो जाते हैं। चह घपने पाद्ववर्तों लोगों फे स्वभाव को भलो भाति सममने लगते हूँ एव उनके हास्य, प्रेम, विनोद घ्रौर श्रभुग्नों में सहानुभूति प्रगट कर सफते हैं। सबसे उत्तम हास्य वही है जो फोमलता श्रौर कृपा के भावों से भरा हो 1 व * फिट ऊताएण0पड भावटा फा०टि5525 (0. कपती,टाा मात छीक्ट्ल ४00१ 10६९, कप छा, श0पा $पऐ९55, १001 50010 ह01 एवघण, जटाटाधणा, इाफ05घपाट 0 पातंटाा ९55 दि पट 9९३], , एट 900, पट णूफूषटइइरं, चाट छावीरफूह, है. पायाए एाा ए फिट फेपापणठपड (छाए उड़ फुर९ इधाए (0 92 0 एिए्तपिद 01८ पाद६01९, (0




User Reviews

  • Meenakshi Chaturvedi

    at 2020-09-21 10:27:02
    Rated : 8 out of 10 stars.
    हिन्दी साहित्य में हास्य रस शोध एवं आलोचनातमक ग्रन्थ है 1956 में प्रथम संस्करण 1970 में तृतीय संस्करण
Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now