भारतेन्दुकालीन व्यंग-परम्परा | Bhartendukalin Vyang-prampara
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.8 MB
कुल पष्ठ :
144
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about वृजेन्द्र नाथ पांडे - Vrajendra nath pandey
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२७ मूषक स्त्रोत है राजस की कतरनी यदि चलुकमान इफीम ने श्राप के पकड़ने के लिये पिंजबे बनवाये पर श्राप उनको भी काट कर निकल जाते श्रताएम आप बम्नई कहाकतते की पिजरापोल में भी न रहेगें हा इसी से हम भी मरे छर श्राप भी मरे है इतिभी इतिश्री शाल्न में खेतो के नाश करने के हिये छः शति लिखी है उनमें एक नम्बर श्राप का भी है । हम एग्रीकलूचर डिपार- शेन्ट के डाईरेक्टर साहब को परामर्श देते है कि छापके लिये कोई जल्दी तफ़बीज्ञ करें । हे झामेक रूप रूपाय विष्णवे प्रमविष्णवे शाप के श्नेक रुप हैं | कोई छोटे बाल्नखिल्य के समान कोई मोटे भीमपन के प्रमान कोई छोटे रावन की सम्तान फोई उपद्रव करने में शैतान के शैतान बस दम शाप की सुति गान करते है | दे शुरू गोधिन्द । सब जातियों में शुरू पुरोहित पादरी होते है शाप की जाति में भी पहाड़ी मूसा छुछ गौरवास्पद हैं उसे देखकर श्राप कुछ डरते पर जहां बह शाप के साथ घड़ी दो घड़ी किसी सहस्प के घर में रद्द कि आपने उनका श्रदब कायदा सब छोड़ा | इससे थह्ट हृष्टोन्त सन्ब हुआ कि गुरू गुड़ ही रहे शर चेला चीनी हो गये । है शिक्षा गुरू वा परीक्षा गुरू सब का कोई ने कोई शुरू शवश्य हैं बाप ने भी यह वीरहरण माखन चोरी श्रवश्य किसीसे सीजी होगी झ्ापापूर्वक श्रपनी मगवद्ीता तो सिस्लाइये । दे प्रधाद मतिवाद | संसार का बह प्रवाद भी शाप ही में धटता है. कि जिस इंडिया में साय उसी में छेद करे । चल श्राप से बढ़ कर. ्रीर कीन प्ररस्खिदरान्वेषी दै दे मुक्तिदाता जब ब्िक्वी ने नौ सौ मूसे था लिये तब उसे शन हुझा बह मक्े को इज करने गई श्रौर उसे मोक्ष हुछा पर यदि वह सौ मूसे श्रौर खा लेती तो फिर सदेह स्वर्ग को ही ली गती ।
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