टाल्स्टाय की कहानिया | T’aalst’aay Kii Kahaaniyaan’
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
245
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्७ टायल्स्टायकी कहा नियां
और बोला--देखो, मैंने जूतोंमें मिट्टी भरके बाहर फेंफकर यह
सुरंग लगायी है, चुप रहना । में तुमको यहांसे भगा देता हूं ।
यदि शोर करोगे तो जेलके अफसर मुझे जानसे मार डालेंगे,
परन्तु याद रखो कि तुम्हें मारकर मरूगा यों नहीं मरता ।
भागीरथ झ्पने शत्रुको देखकर क्रोघसे कांप उठा और हाथ
छुड़ाकर बोला मुझे भागनेकी इच्छा नहीं, '्औौर मुझे मारे तो
तुम्हें २६ वष हो चुके । रही यह हाल प्रकट करनेकी बात, जैसी
परमात्माकी झाज्ञा होगी वैसा होगा ।
अगले दिन जब कैदी बाहर काम करने गये तो पहरेवालोंने
सुरंगकी मिट्टी बादर पड़ी देख ली । खोज लगानेपर सुरंगका पता
चज्ञ गया। ह्किम सब केदियोंसे पूछने लगे । किसीने न बत-
लाया क्योंकि वह जानते थे कि यदि बतला दिया तो बलदेव
मारा जायगा । अफसर भागीरथकों सत्यवादी जानते थे, उससे
पूछने लगे--बूढ़े बाबा तुम, सच्चे झादमी दो । सच बताझो कि
यह सुरंग किस ने लगायी है ।
बलदेव पास ही ऐसे खड़ा था कि कुछ जानता ही नहीं । भागी-
रथके होंठ और दाथ कॉप रहे थे । चुपचाप विचार करने लगा
कि जिसने मेरा सारा जीवन नाश कर दिया उसे क्यों छ्विपाऊँ ?
दुःखका बदला दुःख उसे अवश्य भोगना चाहिये, परन्तु बतला
देनेपर फिर वह बच नहीं सकता । शायद यद्द सब मेरा श्रममात्र
हो, सौदागरको किसी श्र नेद्दी मारा हो । यदि इसने दी मार!
है तो इसे मरवा देनेसे मुझे क्या लाभ होगा ?
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