टाल्स्टाय की कहानिया | T’aalst’aay Kii Kahaaniyaan’

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T’aalst’aay Kii Kahaaniyaan’ by काउन्त टाल्स्टाय - Kaunt Talstay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्७ टायल्स्टायकी कहा नियां और बोला--देखो, मैंने जूतोंमें मिट्टी भरके बाहर फेंफकर यह सुरंग लगायी है, चुप रहना । में तुमको यहांसे भगा देता हूं । यदि शोर करोगे तो जेलके अफसर मुझे जानसे मार डालेंगे, परन्तु याद रखो कि तुम्हें मारकर मरूगा यों नहीं मरता । भागीरथ झ्पने शत्रुको देखकर क्रोघसे कांप उठा और हाथ छुड़ाकर बोला मुझे भागनेकी इच्छा नहीं, '्औौर मुझे मारे तो तुम्हें २६ वष हो चुके । रही यह हाल प्रकट करनेकी बात, जैसी परमात्माकी झाज्ञा होगी वैसा होगा । अगले दिन जब कैदी बाहर काम करने गये तो पहरेवालोंने सुरंगकी मिट्टी बादर पड़ी देख ली । खोज लगानेपर सुरंगका पता चज्ञ गया। ह्किम सब केदियोंसे पूछने लगे । किसीने न बत- लाया क्योंकि वह जानते थे कि यदि बतला दिया तो बलदेव मारा जायगा । अफसर भागीरथकों सत्यवादी जानते थे, उससे पूछने लगे--बूढ़े बाबा तुम, सच्चे झादमी दो । सच बताझो कि यह सुरंग किस ने लगायी है । बलदेव पास ही ऐसे खड़ा था कि कुछ जानता ही नहीं । भागी- रथके होंठ और दाथ कॉप रहे थे । चुपचाप विचार करने लगा कि जिसने मेरा सारा जीवन नाश कर दिया उसे क्यों छ्विपाऊँ ? दुःखका बदला दुःख उसे अवश्य भोगना चाहिये, परन्तु बतला देनेपर फिर वह बच नहीं सकता । शायद यद्द सब मेरा श्रममात्र हो, सौदागरको किसी श्र नेद्दी मारा हो । यदि इसने दी मार! है तो इसे मरवा देनेसे मुझे क्या लाभ होगा ?




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