तुलसीदास और उनका युग | Tulasi Aur Unka Yug
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
60 MB
कुल पष्ठ :
505
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दे
गा्पर गम्भीरतापूर्वक विचार किया गया है और तुढ्सीके 'मानस'
तथा कुछ अन्य अ्न्थोंमें संस्कृत ग्रम्थोंकी जो प्रतिच्छाया सिछती है उसकी
ओर स्पष्ट रूपसे पहुले-पहल अध्येताओँका ध्यान इसीमें आछकृष्ट किया
गया है।
आचार्य रामचन्द्र शुक्लने. गोस्वामीजीकी कलाका महत्व
अपने “गोस्वामी ठुल्सीदासमें उद्ाटित किया है। पहले उनकी यही
आलोचना 'तुलसी-ग्रन्थावली के तृतीय खण्डमें संग्रहीत थी, किन्ठु
सन् १९३५ में जो संशोधित और परिवर्धित संस्करण निकला है
उससे जीवनखण्ड निकाल दिया गया है और पुस्तक लेखकके दाब्दोमें--
“अपने विछुद्ध आलोचनात्सक रूपमें पाठकोंके सामने रखी जाती है /””
ग्रन्थमें प्रतिपादित विषयोंसे अवगत होता है कि इसमें काव्य सौष्रवके
उद्घाटनका दही अत्यधिक प्रयास है। “तुलसीकी काव्य पद्धति'से लेकर
अन्तिम शीर्षक-'हिन्द साहित्यमें गोस्वामीजीका स्थान”-पर्यन्त प्रायः सर्वत्र
काव्य-सोप्रबकी ही चर्चा है । पुस्तकके पु ७५ से पृ० १६० तक जिन
काव्यात्मक विशेषता ऑँंका वर्णन सिलता है उन्हें अत्यन्त संक्षेपमें यों कह
सकते हैं--गोस्बासीजीकी रुचि काव्यके अतिरंजित अथवा प्रयीत स्वरूपकी
ओर नहीं थी और न कुतूहलोत्पादन और मनोरज्लन ही उनका उद्द स्य
था । उनकी रचि थी यथाथ चित्रणकी ओर । वे हमारे सामने कविकें
अतिरिक्त उपदेष्ठाके रूपमें भी आते हैं। उन्होंने वीरगाथाकाल और
प्रेमगा थाकालके बैमवसे भी अपनी काव्य-पद्धतिकों विशेष उन्नत किया है ।
रामकथाके मार्मिक स्थलॉकों पहचानने ओर उनकी विशद व्य्झना करनेमें
उनका कवि-हृदय सदैव सजग रहा है। कथाके विभिन्न पात्रोंके चरिन्न-
चित्रणमें भी उनकी प्रतिभा अप्रतिम है । बाह्म-दृश्य-चित्रणसें उन्होंने
प्राचीन संदिल्ट च्वत्रण-पद्धतिका आश्रय यद्यपि कम छिया है; पर उनकै
प्विचोमे असंगति, सुरुचिका अभाव, चमस्कारप्रियता, अस्वाभाविकता
आदि वे अवणुण नहीं सिलते जो हिन्दी-साहित्यके अन्य छोटे-बड़े कवियों मैं
पाये जाते हैं । उन्होंने अलंकाररोको भावोका उत्कर्ष दिखाने और रूप;
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