शिक्षा | Shiksha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२७० .. शिक्षा । जि ् ्ग समय उससे काग़ज़ जलाने का तजरिबा कराना चाहिए । क्योंकि यदि इसके किसी भजन पर ध्राग गिर भी जायगी तो मैं इसे अधिक जल जाने से वचा | लूँगी । इसके सिवा काग़ज़ जलाने से इसे आनन्द ता दै--इसका मना- रखन दाता हैे--इस मनारूजन से किसी श्रौर की कोई दवानि नह्दीं । पर 1 | इससे इसे श्राग के गुण-घर्म्म-सम्बन्धी ज्ञान की प्राप्ति ज़रूर है । अतएव इस मनारब्जन में बाधा डालने से इसे ज़रूर बुरा लगेगा श्रौर मेरी तरफ से . थाड़ा बदुत द्रघ-भाव इसके मन में ज़रूर पैदा हो जायगा । जिस तकलोफ़ से मैं इसे बचाना चाहती हूँ उसके विषय में यदद कुछ नहीं जानता--उसका इसे कुछ भी ज्ञान नद्दीं । अत्तरव इसकी इच्छा का भज्भ द्ोने से जो तकलीफ इसे होगी उसका श्रसर ज़रूर उसके दिल पर होगा ओर उस तकलीफ का एक-मात्र कारण यद्द मुझे दी समभेगा । जिस दुःख का कुछ भी ख़याल इसे नद्दीं दै--जिसकी अत्यत्प भी कट्पना इसके मन मे नहीं दै--भ्रतरव इसके लिए जिसका अस्तित्व दी नद्दी है उससे इसे बचाने का प्रयत्न मैं ऐसे ढँग से करने जाती हूँ जो इसे बहुत दुः खदायक होगा । इस कारण यद्द अपने मन से समभेगा कि मेरी दुःख देनेवाली यद्दी है । अझतएव मेरे लिए सबसे अच्छी बात यह है कि भावी दुर्घटना से में इसे सिफ़े सावधान करदू और बहुत अधिक तकलीफ से इसे बचाने के लिए तैयार रहूँ । इस तरह अपने मन मे सोच-विचार करके वह बच्चे से कद्देगी-- देखे ऐसा करोगे ते शायद तुम जल जावगे । बच्चे बहुधा इस तरह की शिक्षा नह्दीं मानते । वें जा कुछ करते द्वाते हैं उसे करही डालते हैं। कल्पना कीजिए कि इस बच्चे ने भी अपनी माँ की बात नहीं मानी । फल यह हुआ कि उसका हाथ जल गया । श्रब विचार कीजिए इससे नतीजे कौन कौन निकले ? पहला नतीजा यह निकला कि जो ज्ञान बचचे को कभी न कभी दाना दी था श्रौर जिसकी प्राप्ति बच्चे की रक्षा के लिए जितना दी शीघ्र हो जाय उतना द्दी झच्छा वद्द ज्ञान झाज ही उसे हो गया । दूसरा नतीजा बच्चे को मालूम दा गया कि माँ जा मुभ्े ऐसा करने से मना करती थी चद् मेरा कल्याण करने के इरादे से ही करती थी । इससे बच्चे के ध्यान में यह बात भी गई कि माँ उसकी विशेष शुभचिन्तना करनेवालली है । उसे यह




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