श्रीमदवाल्मीकि रामायण अरन्याखंड ४ | Srimadvalmiki Ramayan Aranyakand-4

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Srimadvalmiki Ramayan Aranyakand-4 by मदलराम जायसवाल -Madalraam Jaiswal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ उनसखवाँ सग इदु--४६३ वामनेत्रादि अड्डों के फदकने से सीता पर विपत्ति पढ़ने की शक्ा कर, श्रीरामचन्द्र जी का लदमण को, 'अपनी आज्ञा के विरुद्ध 'झाश्रम छोद कर चले 'आाने के लिए चलना देना । प्राठवाँ सगे पदु३--४७३ श्रीरामचन्द्र जी का घबडाते हुए 'झाश्रम को ओर दौडना | 'माश्रम से सीता को न देख कर, श्रीगामचन्द्र नी का उन्मत्त सा हो जाना और सीता के बारे में बूक्षादि से प्रश्न करना । इकसठवों सगे छ3३न-न४८० सीता के लिए श्रीरामचन्द्र जी का दुरी होना । मीरामचन्द्र 'ौर लदमणु का सीता की सोज में इधर घर घूमना । विलाप करते हुए श्रीसगचन्द्र को शान्त करने के लिए लद्मण का समफाना | चासठवों सगे ४८०-+४८४ श्रीरामचन्द्र जी का दीन होकर, सीता के लिए धार बार जिलाप करना | अेसठवाँ सर्ग हर ४८४--४४३ दु खात्ते श्रीराम का विलाप श्र लर्मण का उनको घीरज बेंघाना । चौसठवाँ सम एस३---४५०६ *गोदावरी के तट पर सीता की खोज में घूमते फिरते शीसमचन्द्र और लदमण को दिरना द्वारा दाचरा दिरा में जाकर ढढने का संकेत सिलना




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