आलोचना : प्रकृति और परिवेश | Aalochana Prakriti Aur Parivesh

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Aalochana Prakriti Aur Parivesh by डॉ तरक्नीय बाली - Dr Tarakneey Bali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परिप्रेक्य | ६. अपनी इति में जिन परिस्थितियों या तथ्यों वा चित्रण करता है, वे जड नहीं होते 1 कलाकार वास्तव में तथ्य का नहीं, तथ्य की भावता या ग्रतीतिं का चित्रण करता है । यहाँ बुनियादी तत्व है 'प्रवीति' । अ्रतीदिं तथ्य का चेततत रूप है, तथ्य का वह रूप है जिमम कलाकार के व्यक्तित्व का अश समाहित है। व्यक्ति के चेतन अश और तथ्य के सम्मिलित मस्तुलन का नाम ही 'प्रतीति' है। इस सम्मिलित सन्तुलन म टैत नहीं है 1 प्रतीति तो एक इकाई है । तथ्य की वस्वुपरक सत्ता का ज्ञान और उस ज्ञान की ब्यवितगत प्रतिक्रिया दाना मिलवर जिस इकाई की निमिति करते है वही तथ्य की प्रतीनि है । उदाहरण के लिए 'बीती विभावरी जाग री' में धसाद जी ने ऊपा का चित्रण नहीं बिया । यह गीत जो ऊपा की प्रतीति की अभिव्यक्ति करता है, कवि न उपा को एक विशिष्ट रुप में देखा है । ऊपा बसे तो एक तथ्य है। एक परिस्थिति है । लेकिन कवि मे इस तथ्य ने विशिष्ट प्रतिक्रिया जगायी । चढ़ प्रतिद्िया ऊपा तथ्य से सम्मिलित होकर एक विशिष्ट रूप या प्रतीति को जन्म देती है। यहू प्रतीति 'ऊपा' नहीं वरन्‌ 'ऊपा-नागरी' है जिसके साथ कवि की अनुभूतियाँ सफृकत हैं । इसलिए इस गीत में हम जो विद्यमान दिखायी देता है बह ऊपा नहीं, ऊपा की प्रतीति है, ऊपा की वह भावना है जो कवि की कृति है। इसीलिए यह भावना या प्रतीति एक अखण्ड, अविभाग्य सत्ता है और इसीलिए अलकार काव्य का बहिरग तस्व नहीं है। अलकार्य और अलकार का भेद कात्य की भ्रान्त धारणा पर आधारित है । काव्य तथा कला में वाणित प्रत्येक तथ्य या परिस्थिति का यथाथे स्वहप एसा ही होता है। वह तथ्य या परिस्थिति न होवर तथ्य या परिस्थिति की प्रतीति होती है । यह प्रतीति परिस्थिति और व्यक्तित्व की अखण्ड ससृध्टि है, अविभाउय अटूट सत्ता है । इसलिए एक दुष्टि से जिसे परिस्थिति कहा जाता है, वही दूसरी दृष्टि से व्यक्तित्व है । यही काव्य का स्वभाव है _. काव्य के स्वभाव पी दृष्टि से देखते हुए यह स्पप्ट है कि क््रि-कर्म मल में एव सामाजिक कर्म है। यदि केवल व्यक्तित्व के विन्दु से चिन्तन आरम्भ किया जाये तो काव्स कवि की कृति है। प्रथम कृति व्यक्नित्व है। और यह एक सामाजिक कृति है यह मनोविज्ञान से सिद्ध है 1 इसलिए काव्य एक ऐसी कृति है जो सामाजिक कृति की सर्जना है । इसलिए उसमें सामाजिकता सम्कार रूप में ही विद्यमान होती है ! प्रर्येक व्यक्तित्व भ सामाजिकता का तस्व होता है। इस सामाजिक्ता के तत्व वे स्वरूप में भेद हो सकता है, विरोध भी हो सकता है, लेकिन किसी मी व्यक्तित्व में सामाजिकता का अभाव नहीं हो सकता । यदि कोई ऐसा बहता है, और आजकल कुछ कवि और लेखन भी ऐसा कहते है, तो चह काव्य




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