राज्यपाल का पद | Rajyapal Ka Pad
श्रेणी : राजनीति / Politics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
235
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ. जे . आर. सियांच - Dr. J.R. Siyanch
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)6 राज्यपाल का पद
राज्यपालों के समान नहीं समभा जाना चाहिये ।श० यहां पर यह तथ्य ध्यान में रखने
यग्य है कि जब डा० राजन्द्रप्रसाद मारत के राप्ट्रपति थे उस समय उन्होंन यह प्रयत्न
किया था कि राज्यपाल सक्रिय राजनीति में भाग ने लें । उदादरगात: एक व्यक्ति
राज्यपाल होते हुए भी श्रखिल मारतीय कांग्रेस समिति का. सदस्य बनना चाहते थे,
लेकिन राष्ट्रपति ने उन्हे ऐसा करने की श्राज्ञा नहीं दी ।* इसी प्रक।र एक राज्यपाल
श्रपनसे राज्य की राजनीति में भाग लेने के लिए राजनैतिक दौरे करते थे, जब यह
राष्ट्ररति को यह मालूम हुमा तो उन्होंने राज्यपाल को एसा करने से रोक दिया । जो
राज्यपाल इन प्रतिचन्वों को नहीं मानते थे उन्हे त्यागपत्र देना पड़ा 1 लेकिन
डा० राउन्द्र प्रसाद को भी इस दिला में धांधिक सफलता ही मिली क्योंकि उस समय भी
कुछ राज्यपाल ऐसे थे जो कांग्रेस के पक्ष में ऐसे भापणा दे दिया करते थे*जो राजन तिक
टूप्टि से साघारणतया एक राज्यपाल को नही देने चाहिये ।**
यहाँ पर यह चर्चा करना भी श्रावव्यक है कि यदि राजनेतिक व्यक्तियों को
राज्यपाल नियुक्त विया. जायेगा तो उन का संबंध श्रवद्य ही. राजनेतिक दलों से होगा
श्रौर श्रीप्रकाथा का विचार है, कि “राजने तिक जीवन से संवंध रखने याले व्यक्तियों को
राज्यपाल स्युक्त किया जाना उचित है, लेकिन उन मन्त्रियों को जो चुनाव में पराजित
हो गये हैं. राज्यपाल नियुक्त नहीं किया जाना चाहिये । जो व्यक्ति राज्यपाल नियुक्त हों,
उन्हें चाहिये कि थे सक्रिय राजनीति से सन्यास ले लें । वे राप्ट्रपति या उपराप्ट्रपति
तो सन सकते हैं लेकित इन के श्रतिरिक्त उन्हें कोई भी श्रन्य पद स्वीकार नहीं करना
चाहिये । यदि यह प्रथा स्थापित हो जाये तो वे व्यक्ति जो वेन्द्र में मस्त्री रहने के
पदचातू राज्यपाल बने हो बड़ी श्रासानी से दलगत राजनीति से ऊपर उठ सकते हैं ।
यदि राज्यपाल कुछ समय के पथचात् स्वयं ही मन्त्री वन जायें तो इस पद की प्रतिष्ठा
को 'घक्का पहुंचता है 1९०
लेकिन यह खेद की घात है कि श्रसल में ऐसा नहीं दोता श्रौर हमें श्रनेक ऐसे
उदाहरण मिलते हैं जहाँ पर राज्यपाल श्रपना कार्यकाल पुरा करने के पदचातु या तो
स्त्री बने हैं या उन्होंने कोई श्रीर पद स्वीकार कर लिया 1 उदाद्रणतः थिव्वनाथ
दास उत्तर प्रदेदा के राज्यपाल रहने के पब्चात उड़ीसा के मुख्यमंत्री बने । श्रजीत प्रसाद
जन ने केरल का गवर्नर रहने के पथ्चातू लोकस मा का चुनाव लड़ा । श्रीमती विजयलक्ष्मी
पंडित बम्वई की राज्यपाल रहने के पद्चातू संसद सदस्य बनीं । हरेकृप्ण मेहताव
चम्वई के राज्यपाल रहने के पब्चातत 1958 में उड़ीसा के मुख्यमंत्री चत्ते । उड़ीसा के
भृतपूव राज्यपाल बाई० एस० सुखतांकर वाद में एक पद्लिक संवटर कम्पनी के श्व्यक्ष
बने । बिहार के भूतपूर्व राज्यपाल डी० के ० वसा केन्द्र में मंत्री नियुक्त किए गए |
यदि राज्यपाल के पद की प्रततिप्ठा को बनाये रखना है तो उसके लिए यह श्रावव्यवा दै
कि राज्यपाल को श्रपना कार्यकाल पूरा करने के पब्चात, राट्रपति या उपराप्टपतति के
पद को छं कर, किसी श्रीर पद को स्वीकार करने की थ्राज्ञा नहीं होनी चाहिये ।
लेकिन ऐसा करने मे पहले यह सुमाव दिया जाता दै कि राज्यपाल को सी राष्ट्रपति
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