सारस्वतम | Sarasvatam
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
61
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ रसिक विहारी जोशी - Dr. Rasik Vihari Joshi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दी
सारस्वतमु
[ १५]
कभी ब्रह्मा को वेदों से युक्त करने के लिए तुमने यत्न: किया था और कभी वेद की
श्रुतियों को ब्रह्मद्रव से सौ गुना करने के लिए तुम प्रकट हुई थी । तुमकों (शास्त्र)
प्रख्योपास्या से सुन्दर कहते है । इसलिए कौन विद्ान वुम्हारी स्तुति करने. वाले
उत्कर्ष की ऊँचाई को नहीं जानता ? + - ्
[ १६.)
हे सरस्वती ! जो व्यक्ति तुम्हारी सेवा, स्तुति, प्रणाम तथा पूजा की विधि को नहीं
जानता हुआ भी तुम्हारे चरणारबिन्द को निरन्तर तीन रात तक अथवा चिरात्र (उपा-
सना) विधि से स्मरण करता है; तुम, मदनाशक कृपापांग के आसंग से गूँंगे को
वाचस्पति और अत्यन्त निर्धन को धनपति कुवेर बना देती हो ।
[ १७ ]
जब वीणापाणी (सरस्वती) रस भरी वीणा को बजाती हे तच हृदय-कमल की गुट
में वेदध्वनि का नाद गँजने लगता है और प्रणाम करने वाले भक्तों में तत्काल (समस्त)
प्राणियों में समभावना तथा तुम्हारी पूजा विधि में प्रणिघान उत्पन्न हो जाता
[ १८)
पहले कभी शुक्ल पक्ष में चन्द्रमा ने तुम्हारा मुखचन्द्र देखकर उससे मित्रता करने
की इच्छा से प्रसन्न होकर अपनी दृद्धि करने की इच्छा की थी । दठिनतु बह तुम्हारे
सुखचन्द्र को मुगशिशु से हीन तथा स्वयं अपने विस्व को सूगशिजु ने युक्त देखकर
तन्काल लज्जा के समुद्र में डूब गया । दर
( श६ 3
जब हंस (जीवात्मा) हृदय-कमस की कर्णिका में 'सोहम' समन्वय का (अजपाजप थिधि
से) रणन करना चाहता है, तव चिदाकाण के कुहर में दिव्य नाद मूँजने लगता है
जैसे सूर्य अन्धकार को तत्काल नप्ट कर देता है; उसी प्रकार ब्रह्मा, विष्णु नथा भय
झादि द्वारा पूज्य यह मनन भी पापराणि को सप्ट कर देता है ।
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