साहित्य के नए रूप | Sahitya Ke Naye Roop
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
172
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ श्याम सुन्दर घोष - Dr. Shyam Sundar Ghosh
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१०
प्रंडिविद्लिए, ए8ए फु०्पा धटवेधिंठा5, 50ापिएए इट81, 0001 800
5010 पं6५ 96६ फ्०७, 5णलीपंफ्ट 85 पाता णाप्पपिए 85. प्रा0ए87
पाणणं8. इस उद्धरण से सिद्ध है कि आंचलिक उपन्यासों में रोमांस की
तुलना में यथार्थ ही प्रवल होता है ।
यथार्थवाद में यह मत प्रतिपादित किया गया कि वस्तु का यथातथ्य
वरुन होना चाहिये, मापा में प्रामाणिकत। और यथार्थेता होनी चाहिये । आंच
लिकता के विकास पर इसका मी अभीए् प्रमाव पड़ा । स्थान, काल ओर पात्र
के सही वर्णन के क्रम में विशेष सतकंता वरतने के कारण ही झांचलिकता
का विकास सम्भव हो सका ।
यथार्थवाद के अतिरिक्त, सूत्तिमता के सिद्धान्त ने भी श्रांचलिकता के
विकास में आवश्यक योग दिया । कहां गया कि काव्य में अर्थ-प्रहण से काम
नहीं चलता, घिम्व-ग्रहण अपेक्षित हैं । लेकिन, यह शर्त मात्र काव्य के लिये ही
श्रनिवायें न रहकर रचनात्मक साहित्य मात्र के लिये अनिवाये हो गयी ।
विम्व भ्रथवा सुतिमता की इस अनिवार्यता ने भी भांचलिकता को सवल और
सुस्थ किया । इस प्रकार इसने एक श्र तो यथार्थ के आग्रह के कारण
वस्तुतत्व का विकास किया दूसरी ओर मुतिमत्ता के सैद्धान्तिक श्राग्रह के
कारण शिल्प का नवीन मायाम प्रस्तुत किया । इसलिये आंचलिक उपन्यासों
की यह सामान्य विशेषता रही कि उनमें सामान्य उपन्यासों की अपेक्षा अधिक
यथाधेता श्रौर मूर्तिमत्ता रही । .
ऊपर झ्रांचलिक उपान्यासों की रोमांसहीनता का उल्लेख किया गया है,
पर हिन्दी के आंचलिक उपन्यासों के सन्दर्भ में यथार्थत: बात ऐसी है नहीं;
क्योंकि स्वयं यथायथें भी पूर्णतः: रोमांसदहीन नहीं है । यथार्थ भौर रोमांस उतने
मलग हैं नहीं, जितने समझे जाते हैं । यथार्थ के वीच रीमांस श्रौर रोमांस की
वीच यथार्थ निहित हो सकता है । लेकिन, जब हम रोमांस का अतिवादी
रूप लेते हैं, तो वह निश्चय ही यथार्थवादी उपन्यासों, भर इस नाते आंचलिक
उपन्पासों, का लक्ष्य नहीं हो सकता । जीवन की यथाथेता के बीच जो सरल-
-सहज रोमांस फूट पड़ता है, उससे कोई यथार्थवादी या श्रांचलिक कृति कँसे
टूर रह सकती है ?
आंचलिकता को साधारणत: दो भागों में विभाजित किया जा सकता
है । पहला उसका सरल-सहज-स्वाभाविक रूप, दूसरा उसका उम्र अथवा स्फीत
रूप । अपने सरल-सहज रूप में आँचलिकता साहित्य में यथार्थवाद के साथ
ही प्रतिफलित होने लगी । यदि उदाहरण की आवश्यकता ' अनुभव की
User Reviews
No Reviews | Add Yours...