मगरे का गाँधी | Magre Ka Gandhi

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Magre Ka Gandhi by डॉ धर्मचंद्र - Dr. Dharmchandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रद्धाजलिया श्री छलाणीजी के निधन के अवसर पर प्राप्त सस्थाओ सामाजिक कार्यकर्त्ताआ व कुछ सम्बन्धियां के श्रद्धाजली पत्रो को सकलित किया गया है| चित सण्ड श्री छलाणीजी के सार्वननिक व पारिवारिक जीवन से सम्बन्धित कुछ चित यथा स्थान दिये गये हैं जिनसे उनके देहिक स्वरूप, सेवा कार्य और सम्बन्धा का सीमित दृश्य समक्ष होता है। स्मृत्ति ग्रन्थ के लिये सामग्री जुटाने और सम्पादित करने म दो वर्ष का समय लगा। श्री मनोहरलाल भादाणी ने श्री छलाणीजी से सम्बद्ध व्यक्सियो से सम्पर्क करने, भंटवार्ता करने और टिप्पण तेयार करने में अथक श्रम किया है। श्री योगेन्द्र कुमार रावल ने टिप्पणियो व कच्चे कोरे लेखा को सुभाषित एव व्यवस्थित रूप दिया है। डॉ किरण चन्द नाहटा ने स्मृति यन्थ के कलेवर को कसने, सजाने और सम्पादन को गति देने का कार्य किया है। दूर रहते हुए भी डॉ. चन्द्रा छलाणी सामयी जुटाने में सतत सक्रिय रहीं । स्वस्थ, समृद्ध समब्टिगत जीवन और समग्र व्यष्टिगत जीवन की रचना के कार्य म अर्द्ध शताब्दी से भी अधिक लम्बे काल तक सलग्न प्रचार और प्रसिद्धि से परान्मुख गाधीवादी आदर्शों के मूर्त रूप इस निष्काम, निस्पृह, ऋषि तुल्य जीवन का विवरण, प्रसंग सस्मरण और श्रद्धा--'मगरे का गाधी मे समर्पित है। मगरे का गाधी स्मृति ग्रथ है जिसमें सेवा, सयम और त्याग का तत्त्व है स्नेह सम्मान और श्रद्धा का भाव है। यह कोई साहित्यिक कृति नहीं है। एक ही व्यक्ति के जीवन को अनेक लोगों ने अपनी अपनी दृष्टि से देखा और अनुभव किया है। व्यक्तित्व का प्रखर रूप और प्रत्यक्ष कर्म किसी से भी छिपा नहीं रहा । अत आलेखों मे उनके गुण व कर्म की पुनरावृत्ति, भजन में धुवपद की अवान्तर पुनरावृत्ति की तरह हुई है। साथ ही परिस्थिति, स्थिति और अनुभूति की व्येक्तिक विशिष्टता के फलस्वरूप श्री छलाणीजी के चिन्तन, चरित्र और चर्या के विभिन पक्षों की विविधता रचनाओ में प्रचुरता के साथ उभरी है। श्री छलाणीजी सक्षेप मैं सटीक बात कहने मं सक्षम थे। किसी भी विषय में अपना मत अविरोधी एव निर्विवाद रूप में रखने में कुशल थे, मित एवं मिष्ट भाषी थे परन्तु उनके सम्बन्ध में लिखे गये अधिकाश आलेखा में विस्तार आधिक्य है। लेखक कोई साहित्य के विद्यार्थी या सिद्धहस्त रचनाकार नहीं है। श्री छलाणीजी के जीवन विचार, वाणी और व्यवहार को जैसा देखा पाया और जो प्रभाव हुआ उसे ही भाव प्रवणता के साथ व्यक्त कर दिया है। अत विस्तार और पुनरावृत्ति इस ग्रन्थ में स्वाभाविक रूप म है|




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