तत्वाबोधान | Tatvabodhan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रीमते शमाचुजाय नम! | रदस्पोध्दाटनकार का पहला आश्ेष, और उसका समाधान। ' रहस्ये।दूघाटनके कतीका समीप यह है कि श्रीरामान- न्दीय. वैष्णवगण श्रीरामानुजसम्प्रदायावलस्वी न. रहकर स्वतन्त्र हो जायें, और श्रीरामानुज सम्प्रदायसे अपने सम्प्र- दायको मिन्न मांग । इस अमीएकी सिद्धिक छिये उन्हेंनि ““रहस्पोद्घाटन ” भे सबसे पहले श्रीरामानन्दीय वैध्णवॉको यह दिखनिका यत्न किया है फि श्रीरामानुज स्वामीजी श्रीरामानन्दीसेंकि आाचायेंमि नहीं है | वर्षों नहीं है? इस- को सिद्ध करनेके छिये उन्होंने यह. युक्ति बताई है कि ' श्रीराममन्त्रराज श्रीरामानुजीय परम्पर मे नहीं मिछता ” | दे छिखते हे कि ” यदि श्रीरामानन्दीय .'वैष्णव श्रीरामानु- जीय परम्परामि होति तो अवश्य श्रीराममन्त्रराज का पता उनकी परम्पसंभ होता * । ' श्रीरामानुजीय परम्परामि श्री- राममस्त्रराज नहीं मिछता ? इस कथनका अभिप्राय कया ? यह हम समझ नहीं सके। यदिं परम्परा शब्द गुरु परम्परा नामक पुस्तक छिया गया हो तो, उस पुस्तकमे श्रीराम- मन्त्र राजका न मिलना कोई बात नहीं है; क्यों कि गुरु- परम्परामि म्नेंकि ठिखनेका नियम नहीं है । प्राय? मन्त्र छिखे ही नृहीं जाता | और उस पुस्तकमे श्रीराममन्त्र ड




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