महासागर उनका भौतिक , रासायनिक तथा सामान्य जैविक अध्ययन | Mahasagar Unka Bhoitik Rasayanik Tatha Samanya Jaivik Adhyayan

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Book Image : महासागर उनका भौतिक , रासायनिक तथा सामान्य जैविक अध्ययन  - Mahasagar Unka Bhoitik Rasayanik Tatha Samanya Jaivik Adhyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रच्याय 2. पृथ्वी और सहासागर के चेत्र पृथ्वी की श्राकृत श्रौर श्राकार : स्थूल रूप से पृथ्वी एक गोले के समान मानी जा सकती है । परन्तु यथापें प्रेक्षणों के अनुसार इसकी आकृति एक घूर्णन के दीघंवृतत यानि एक लघ्वक्ष गोलाभ जिसकी लघु भक्ष घूर्णाक्ष हो, द्वारा ्रघिक निकटता से निरूपित की जा सकती है । पृथ्वी की आ्राकृति भिन्न भिन्न श्रनुकल्पित समीकरणों द्वारा निर्धारित की गई है जिनके स्थिरांक प्रेक्षणों पर आधारित हैं श्रौर जैसे जैसे प्रेक्षणों की संख्या बढ़ती जाती है और उनकी यथाधेता सुधरती जाती है वंसे वैसे इनमें रूपान्तरण सदर्ते है । जल श्रौर स्थल खण्डों के वितरण की श्रसममिति के कारण, इन समीकरणों द्वारा निर्धारित ज्यामितीय श्राकृतियें पृथ्वी की श्राकृति को यथातथ रूप में निरूपण नहीं कर सकती हैं । पृथ्वी के पृष्ठ पर किसी बिन्दु की स्थिति निर्धारित करने के लिये एक निर्देशांक प्रणाली की श्रावइ्यकता होती है और इस रूप में श्रक्षांगा, देशान्तर और ऊँचाई या गहराई को काम में लेते हैं । इनमें से प्रथम दो को कोणीय निर्देशांक से अभिव्यवत किया जाता है श्रौर तीसरा ऊर्ध्वाधघर दूरी से श्रभिव्यक्त किया जाता है जिसे किसी उपयुक्त रेखीय इकाई में व्यक्त किया जाता है । यह ऊर्ध्वॉघर दूरी माध्य समुद्री तल से साघारणतया निकट सम्बन्धित किसी निर्देश तल से ऊपर या नीचे नापी जाती है । किसी बिन्दु का अक्षांद स्थानीय साहुल-सुत्र और भूमध्य समतल के बीच का कोण होता है । चूँकि पृथ्वी एक गोलाभ के रूप में मानी जा सकती है इसलिये विषुवत रेखा के समान्तर कोई समतल, गोलाभ के पृष्ठ को एक चूत में काटेगा और इस वृत पर सभी बिन्दुका अक्षांश एक ही होगा वयोंकि इन बिन्दुग्ों पर तमाम व्यावहारिक उद्देद्यों के लिये साहुल सूत्र को गोलाभ के पृष्ठ के अभिलम्ब माना जा सकता है ये वृत अक्षांश-समांतर वृत कहलाते हैं । अक्षांश भूमध्य रेखा से उत्तर भर दक्षिण में डिग्री, मिनट और सेकण्ड में नापा जाता है । गोले के पृष्ठ पर एक डिग्री अक्षांदा से संगत रेखीय दूरी सभी जगह वही होगी परन्तु पृथ्वी के पुष्ठ पर इकाई श्रक्षांदश द्वारा निरूपित टूरी भूमध्य रेखा से ध्लुवों तक लगभग एक प्रतिशत से बढ़ जाती हैं । विषुवत रेखा पर अक्षांश की एक डिग्री 110,567.2 मीटर शरीर घ्लुवों पर यह 111,699.3 मीटर के समतुल्य होती है । विभिन्न श्रक्षांब-समान्तर वृत के बीच के भूपृष्ठ के प्रतिश्वत सारणी नं० 1 में दिये गये हैं ।




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