भाषिकी और संस्कृत भाषा | Bhashiki Aur Sanskrit Bhasha

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Bhashiki Aur Sanskrit Bhasha by देवीदत्त शर्मा - Devidatt Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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4. भाषिकी और सस्कूत मापा भाषा का स्वस्प आापा की उत्पत्ति चाहे जद भी जिस प्रक्रिया से भी हुई हो, व्यवहार-शेषर में उसका प्रत्यक्षीकरण हमें जिन दो प्रतीकात्मक रूपों में होता है उन्हे हम ध्वनि भ्रतीक तथा लिपि प्रतीक कहू सकते हैं। इनमें से ध्वनि श्रतीकों को उत्त्ति एव प्रत्यक्षीकरण में मानव शरीर के वतिपय अगो (वागगों), वायु के भौतिक गुण धर्मों तथा कान के घारीरिक गुण घर्मों का उपयोग होता है तथा लिपि प्रतीको में किसी आधार भूमि (फलक, वागज आदि) पर अर्कित विशेष चिद्ञो के साथ हुमारी चलु इन्द्िय के सन्तिकर्ष से उत्पन्न उसका प्रत्यसीकरण होता है । यहा पर यह बतसा देंना आवश्यक है रि ये प्रतीक चाहे ध्वन्यात्मक हो चाहे लिप्यात्मक, _ होते हैं यादृच्छिक ही । इसीलिए भाषा के स्थरूप वो परिभाषित करने वाले सभी सापा-शास्वियों ने अपनी परिभाषाओ में भाषा वी इस विशेषता को आवश्यव रूप से समाहित पिया है, उदाहरणार्य, श्त्रुत्वा के द्वारा दी गई तथा अधिकतर भाषा+ शास्त्रियों द्वारा स्वीड़त परिभापा--“भाषा उन वादृच्छिक ध्वन्यात्मक प्रतीको वी व्यवश्था है जिनके माध्यम से विमी सामाजिक (भाषाई) सप्रूह के सदस्य परस्पर अपने विचारों थे आदाने-प्रदान करते हैं ।” (6 13080386 वि 8 5161 एा बणिधडा+ १०८8! 59015 99 पघ्राट्याडइ 0 भा, प्राटा।0टा5 018. इ0दां2 झा0०ए0 ६००06८1216 800 1(८1801) भाइचयं की वात है कि इससे लगभग 1200 वर्ष पूब॑ हमारे भारतीय आचार्य भामह ने भाषा वी जो परिभापएुदी थी उसी वी श्रतिध्वनि उपर्युक्त परिभाषा में सुनाई देती है, वे बहते हैं-- इयन्तः ईदृश्गाः शब्दा! ईडृगर्थाभिधाधितः । ब्यवहाराप सोकस्प प्रागित्पं समय: कृत: ॥ बाव्यालार 6/13 अर्थात्‌ लोक ब्यवहार की आधारमूत्र भाषा थी शब्दावली की सरचना मुनिर्धारित वर्णार्मिफ प्रतीकों तथा उनमें निहित अर्चों के दारा की जाती है । माधिक आपाम आधुनिव' भाषा विज्ञान के जन्मदाता फ्रामीमी विद्वान फईिनेण्ड दे समूर ने भाषा के जिन तोतन आयमों की स्थापना वी है, वे हैं 1 बैयक्तिय, 2 सामाजिव, 3 सामान्य, सर्वध्यापत्र । ॥ बैयश्तिक--उनरी शब्दावली में इसे परोल (एश्०16) कहा गया है जिसका समानार्थी शरद बप्रेजी में स्यीच कहां गया है। जिये हित्दी में याद दे अभिह्त किया जा सकता है । सापा के इस शेपाश रूप में ब्यक्ति तह्य वो अधिक महत्व दिया जाता है । उनतें अनुसार यधपि भाषा एक सामाजिक वस्तु दै मिल्‍्तु




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