रजत रातें | Rajat Raten
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
110
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about फ्योदोर दोस्तोयेव्स्की - FYODOR DOESTOVSKY
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चिड़िया जैसा हो गया था । इसके कारण ख़ू_द मुझे लगमग पीलिया हो गया श्रीर में
श्रमी तक इस क्लिस्मत के मारे श्रौर यदसुरत बनाये गये श्रपने दोस्त को , जिसे दिव्य
साम्नाज्य* के रंग से रंग दिया गया था , देखने के लिये जाने को हिम्मत नहीं कर
पाता ।
सो, पाठक , श्राप समझ गये होंगे कि फंसे में सारे पीटर्सवर्ग से परिचित हूं ।
मे पहले कह चुका हूं कि श्रपनो परेशानी का कारण समझ पाने तक पुरे तीन
दिन तक मेरा बुरा हाल रहा । बाहर भी मेरी ऐसी ही हालत रही ( यह नहीं है , वह
नहीं है , वह कहां चला गया ? ) - हां भौर घर पर भी में लुटा-लुटा-सा रहा। दो
रातों तक में यह जानने की कोशिश करता रहा - मेरे इस छोटे-से घर में यया नहीं
है। क्यों वहू काटने को दौड़ता है ? कुछ भी समझ न पाते हुए मेने श्रपनो हरी , धुएं
से काली हुई दीवारों श्रीर छत को , जिस पर मकड़ी के जाले लटके हुए थे श्रीर जिन्हें
मेरी नौकरानी मात्योना खूब बढ़ाती जा रहो थी , परेशानी से देखा , फ़नोचर पर
फिर गौर से नजर डाली ; हर कुर्सी को बहुत श्रच्ठी तरह से जांचा श्रौर यह सोचता
रहा कि कहीं यहीं तो कोई मुसीबत नहीं है ! ( बात यह है कि श्रगर मेरी एक भी
कुर्सी उसी ढंग से रखी हुई नहीं होती , जैसे वह एक दिन पहले थी , ती में बेचनी
महसूस फरने लगता हूं ) खिड़को पर नद्धर डाली ; मगर बेसुद « ० « दिल को सरा
भी राहत नहीं मिली ! मेरे दिमाएा में तो मात्योता को बुलाने का भी ए्याल झा
गया श्रौर मेंने मकड़ी के जालों श्रौर सभी तरह की गड़बड़ के लिये उसे बुजुर्गाना
ढंग से डांट भी दिया । मगर वह तो केवल हैरानी से मुझे देखती श्रौर उत्तर में एक
भी शब्द कहे बिना कमरे से बाहर चली गयी । चुनांचे मकड़ी के जाले झ्रपनी जगह
पर पहले को भांति ही सटके हुए हैं । भराख़िर झाज सुबह ही में श्रपनी इस परेशानी
के कारण का श्रमुमान लगा पाया । श्ररे ! वे तो मुझे छोड़कर देहाती बंगलों को
भागे जा रहे हैं ! बाज़ारू शब्दों के लिये क्षमा कोजिये , मगर बढ़िया शब्द-चपन की
मुझे सुध ही कहां थी « « « क्योंकि पीटसंबगे का हर श्रादमी या तो देहाती बंगले जा
चुका था या जा रहा था ; क्योंकि बग्घी किराये पर लेता हुम्रा सम्मानित नसर
श्रानेवाला हर व्यक्ति मेरे देखते-रेखते ही परिवार के प्रतिष्ठित मुखिया का रूप
धारण कर लेता था श्रौर हुर दिन का कामकाज निपटाकर हलके मन से श्रपने
परिवार के पास , झपने देहाती बंगले की श्रोर घल देता था ; क्योंकि सभी राहगोरों
के चेहरे पर एक ख़ास भाव झलक रहा था , जो सामने श्रा जानेवाले हुर व्यक्ति से
* रिप्पणियां पृष्ठ १०३ पर देखिये ।
वश
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