राज्यविज्ञान के मूल सिद्धान्त | Rajyavigyan Ke Mool Siddhant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जमुत्व [ १३ रिक्त लोकमत ऐसी वस्तु है जो स्थायी नहीं होनी । वह सदा किसी न फिसो वात से प्रभावित होती रहती हैं श्ौर बडी चल है । जनता को भी राजनीतिक प्रभु सामना उचित सही होगा क्योंकि वह भी धर्माधिका रिया, जमीद्रारां य्थवा सेनिफवादियां वे प्रभाय सम हो सकता ह । एसी श्वम्था में जनता नहीं वरन्‌ व ब्यक्ति हो गजनीतिक प्रभु बन जायगे । जब भिर्वाचकसरडल को राजनीतिक प्रम्र सान लेन हैं तय भी ऐसी ही कठडिमाइयाँ पैदा हो जाती हैं । जहाँ मतदान जनता के एक भाग सके हो सीमित होता है, वहीँ मन ने देनेवाला विशान सतन-समुदाय भी मतदानताद्धा पर श्रपना प्रभाव डालता है । दस प्रकार का कठटिनाइया के कारण दी उुछ लेखक राजनीतिक प्रमुतता को वल्पना को व्यथ मामते है । इस प्रकार लीकॉग का कथन हैं वि राजनीतिक प्रमुत्य के लिये “जिननी हो द्धिक गज की जाती है, उतना ही यह धिक दूर देख पडता है ।”” थां दसने में तो राजनीतिक प्रमुत्य का विचार झत्वधिक थिवेक्पूर। शोर तार्फिक प्रतीत होता है फिन्तु इसकी शधिक पर्गक्ता करने पर यह एक राजनीतिक “द्रादि कारण बन जाता है ; जिसरा भोतिक विज्ञान की तरह राय्य पिज्ञान के ज्लेत्र मे व्याख्या नहीं की जा सकतों 1 द्यॉस्टिन की निश्चित बाननी भावना के वाहर सर्वत्र श्रान्ति हो श्रान्ति देय पड़ती है ! आधुनिक राग्य से जिन व्यक्तियों को क्लानून निर्माण करने को श्सीमित सत्ता होती हैं; वे निदिप्ट दौर स्पष्ट होने हूं किन्तु जिस व्यक्ति या व्यर्ति मण्डल मे वास्तविक सत्ता होती है वह विश्लेपण करने पर श्रव्यक्त हो जाता है। इसी प्रकार गेडल का कथन हैं कि कानूनी प्रमु थे पीदे राजनातिक प्रभु की खोज के लिये प्रयास करने से प्रभुत्व की भावना नप्ट हो जाती है घ्ौर ध्रभुत्व केवल श्रनेक प्रभावों का ढेर रह जाता हैं । चू कि राजनीतिक प्रभु झसंगठित; द्निश्चित आर क्लानून के लिप ग्रपर्चित होता हे श्रौर राज्य वो इच्छा को कानूनों भाषा मे प्रकट करने को क्षमता उसमे नहीं हतों इसलिये उसकी कल्पना राज्य-विज्ञान के लिये झधिय उपयोगी नहीं होती । उसकी फेंवल एक हो उपयोगिता है कि वह लौफिक प्रभुस्य +(९०णो8 50ए€१टंएुएफ) के लिये माग तैयार करती है नो श्रापुनिक ग्रज्ञानन्त की दाधार-शिला है । लोक-प्रभुश्व--- स्वेच्छाचारी एकतन्त्र या झल्पजनतन्त में, भनिश्चित दोते हुए. भी, राजनोतिक प्रभु का श्रस्तित्व हो सकता हैं श्रौर बद्द कादनी प्रभु पर




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