झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई | Jhansi Ki Rani Lakshmibai
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
178
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about भदानसिंह राणा - Bhadanasingh Rana
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)15
अपनी पुस्तक ' 1857 का स्वातत्र्य समर में बिखते हैं--
नाना साहब और छंबीली को शस्त्रशाला मे असिलता धुमाने का
अभ्यास करते देखने का भाग्यलाभ करने वालों मे किसकी आाखें
असीम आनन्द से प्रसन्न नहीं हुई होगी * कभी लक्ष्मी की प्रतीक्षा में
अववारूढ नाना खड़ा रहता था, तो लक्ष्मी भी कमर मे तलवार बाघ
वायु से बिखरे कुन्तलो को सवारती हुई अष्वारूढ होकर वहां आती थी ।
अपनी बैठक से उस तेज घोड़े को नियन्त्रित रखने का श्रम से उसकी **
उस समय नाना की अवस्था अठारह वर्षों की तथा लक्ष्मी की सात वर्षों
कोथी।'
कहने का आशय यही है कि मनूबाई को बचपन में पुरुष-समाज में
ही उठने-बेठने का अवसर अधिक प्राप्त हुआ था ! उसे शिक्षा भी प्राय
पुरुषों के ही समान मिली थी । फलत उसमे पुरुषोचित गुणों का
समुचित विकास हुआ। कदाचित् यही वह कारण रहा हो, जिसने कग्रेजो
से टवकर लेने वाली वीरागना महारानी लक्ष्मीबाई का निर्माण किया !
विवाह
आज भले ही यह बात हास्यास्पद लगे, किन्तु वास्तविकता यही है
कि मनूबाई का विवाह केवल सरत वर्ष की अवस्था मे हो गया था । इस
विवाह का घटनाचक्र भी अपने आप थे कम रोचक नहीं है । यद्यपि
आजकल नगरो मे बालिकाओ के विवाह प्राय अठारह वर्षों की अवस्था
के बाद ही होते है, जो बंघानिक रूप में भी आवश्यक है, फिर भी आए
दिन बाल-विवाह के समाचार पढने और सुनने को मिल जाते है । उस
समय तो प्रचलन ही बाल-विवाहू का था । मनूबाई अभी” एक अबोध
बालिका ही थी कि सामाजिक प्रथा के अनुसार उसके पिता उसके विवाह
के लिए चिन्तित होने लगे । एक तो रूटिब्रस्त भारतीय समाज, वह भी
उननीसवी शताब्दी के पूर्वाद्ध का समय और मोरोपन्त हुए एक मराठा
ब्राह्मण । कालचक़ के कारण वह पूर्व पेशवा बाजी राव के आश्रय में ब्रह्मावत
मे रह रहे थे। यहा उन्हे अपने कुल कें अनुरूप कोई भी योग्य वर नहीं
दिखाई दे रहा था । फलत उनका चिन्तित होना स्वाभाविक ही था ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...