एक रात | Ak Rat
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
221
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)न रे कि शक के के मे
जरा! #५ /अर»त १ धान
धन्य #- जी ७ज-शाा हज कौध्ल #७... अभी बधं हे ८५. अभी कल, अधही ७९ हे... हा की अल) धर #
उत्तरमें लिख दिया--'' असमर्थतापर अत्यन्त खिन्न हूँ । स्वरावलम्बन स्वराज्य
है । सफलताकी हार्दिक कामनाये ।
यह लिख देकर उसके चित्तने चैनकी साँस ली और मानो अन्दर ही अन्दर
मुसकिराकर जयराजने अपने अर्धालखे कांगजोकों खीचकर सामने ले लिया ।
उन्हे पढ़ा, पढ़कर खुश हुआ । आगे लिखनेके लिए. उत्साइस कलम उठाया |
वह कलम कागजपर टिका,-टिक्रा ही रहा, बढ़ा नहीं । और जब वह
कलम वहँसि उठा तब स्याहदीकी एक मोटी काली बूँद वहाँ बैठी शेष रह
गई । थाड़ी देर वह कुर्सीपर खाली बैठा उस बूँदको ही देखता रहा । फिर
उठकर बालोका खुजलाता हुआ ठहलने लगा । ,
', , .ठहरो, मुझे साफ साफ देखने दा । मे कया हूँ १ मैं एक उद्देश्यपर
समर्पित व्याक्ती हूँ । मरा निजत्व क्या है * कुछ नहीं है । मेरा स्वार्थ क्या है !
कुछ नहीं है । क्या मेरे लिए, परमार्थ भी कुछ है ? कुछ नही है। मेरे लिए
एक ही वस्तु है। वहीं मरा स्वार्थ, वही मेरा परमार्थ, वही मेरा निजत्व, वहीं
मेरा लश्य । जब मैं समर्पित हूँ तब में किमी भी और अन्य विचार लिए
खाली नही हूँ, बचा नही हूँ, जीवित नहीं हूँ । मेरी दह, मेरे सन, मेरी बुद्धि-
में कही भी कुछ औरके लिए; अवकादा केसे हो, भमिवाय उसके जिसके लिए,
में न्योछावर हूँ !.. किसके लिए; मे न्योछावर हूँ ? राष्के लिए । राष्ट्के
स्वराज्यके लिए, । राष्ट्र क्या ? वह राष्ट्र कहाँ है? मेरे हृदयमे वह राष्ट
कहीँ है * क्या अमुक और अमुक भौगोलिक परिधियोंसे परिमित भारतवर्ष
नामक भूखडका चित्र मेरे भीतर गहरा उतर कर सदा जाग्रत रहता है ! कया
वही यो जीकी घड़कनमें सदा स्पन्दन करता रहता है ? नहीं, स्पन्दन करता
हृदय है, राष्ट्की भावनाके बिना भी वह स्पन्दन करता है । जान शेष, और
विश्वास्माका निर्देश है तब तक वह स्पन्दन रुकेगा नही, होता ही रहेगा । तब
राष्ट्र क्या है ?. . .लेकिन ठहरो, में शंकितचित्त नही बर्नूगा ।. . . सशयात्मा
विनश्यति । ' यह प्रश्नातीत रह कि राष्ट है । मैं राष्ट्सेवक हूँ । और कुछ
भी नहीं हूँ । जयराज मात्र नाम है । जयराजका कोई पार्थक्य नहीं, कोई
व्यक्तित्व नहीं है । जयराज राष्ट्सेवक है, एक, निरा, बस |...
, ,हरिपुरके आदमी आये । हरिपुर मुझे मॉगता हैं । मैं राष्ट्रका हूँ, प्रान्त-
का हूँ, जिलेका हूँ, गॉविका हूँ, हर आदमीका हूँ । मे किसकी मौंगसे विमुख
घर
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