छायावादोत्तर हिन्दी कविता का दार्शनिक और वैचारिक अनुशीलन | Chhayavadottar Hindi Kavita Ka Darshnik Aur Vaicharik Anusheelan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
255
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)“श्री मुकुट धर पाण्डेय का ध्यान छायावाद का नामकरण करने में इन
चार तत्वों पर केन्द्रित था-धुंधलापन, अन्तर्मुखी विचार सरणि, अमिधानिक सीमा
का उल्लंघन नई शैली ।'”*
आचार्य महाबीर प्रसाद द्विवेदी, नन्द दुलारे बाजपेयी एवं राम चन्द्र शुक्ल
छायावाद को रहस्यवाद का पर्याय तो नहीं समझते पर उसे आध्यात्मिकता से
जोड़कर देखते जरूर हैं। महाबीर प्रसाद द्विवेदी छायावाद को अन्योक्ति पद्यति
समझते थे। “शायद उनका मतलब है कि किसी कविता के भावों की छाया यदि
कहीं अन्यत्र जाकर पड़े तो उसे छायावादी कविता कहना चाहिए।''
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने छायावाद शब्द को उन्हीं अर्थों में लिया है।
एक तो रहस्यवाद के अर्थ में जहां उसका सम्बन्ध कथावस्तु से होता है।
दूसरा प्रयोग काव्य शैली या पद्धति विशेष के व्यापक अर्थ में । “छायावाद का
सामान्यतः: अर्थ हुआ प्रस्तुत के स्थान पर उसकी व्यंजना करने वाली छाया के
रूप में अप्रस्तुत का कथन ।” लगता है अज्ञात के प्रति जिज्ञासा के भाव को
देखकर ही शुक्ल जी ने यह परिभाषा दी जिससे छायावाद की अन्य विशेषतायें
उसकी परिसीमा में नहीं आ पाती हैं |
आगे चलकर रहस्यवाद और छायावाद में भेद किया जाने लगा । शुक्ल
जी ने छायावाद और स्वच्छन्दता बाद में भी भेद किया। पर कुछ लोग
(२०पधपिद्वांआाए) श्रमवश शुक्ल जी द्वारा गढ़े हुए स्वच्छन्दतावाद को भी
छायावाद का पर्याय मानने लगे। यहां समझ लेना चाहिए कि छायावाद न तो
रहस्यवाद है और न ही स्वच्छन्दता बाद बल्कि उसमें दोनों के कत्तिपय युण धर्म
शामिल हैं। जहां तक रहस्यवाद छायावाद, और स्वच्छन्दतावाद शब्दों के शब्दार्थ
और लोक प्रचलित भाव का सम्बन्ध है। निश्चय ही इन तीनों में थोड़ा-थोड़ा
अन्तर है। रहस्यवाद अज्ञात की जिज्ञासा है। तो छायावाद चित्रण की सूक्ष्मता
और स्वच्छन्दतावाद प्राचीन रूढ़ियों से मुक्ति की आकांक्षा। शुक्ल जी ने
छायावाद को नकली साबित करने के लिए जो भगीरथ प्रयत्न किया था, उसको
विशेष महत्व न देकर यह जरूर स्वीकार कर लेना चाहिए कि बांगला में इस
शैली की जो रचनायें होती थीं उनका एक लक्षण छायावादिता भी था। अर्थात्
बांगला में छायावादिता शब्द अवश्य प्रचलित था। छायावाद चाहे न रहा तो ।
इस प्रकार पाण्डेय जी तथा शुक्ल जी के कथन में कोई अन्तर नहीं है |
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