हिन्दी और उसके कलाकार | Hindi Aur Uske Kalakar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
38 MB
कुल पष्ठ :
502
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हनन 6 सताताथि
लि मे
बल सममदनलमपलन मय सवदनरपग्क, हि वि व व व थी था थक थे
गहरी हैं कि उन्हे हटाकर रासो के मूल रूप को पहिचानना नितात कठिन है ।
परन्तु रासो के साथ प्रन्नेपी का यह समिश्रण रासो की इस लोक प्रियता का
ही परिचायक है कि परवर्तती ,जनकवियो श्रौर लोक साहित्य के सखजनहारो ने
किस श्रद्धा श्रौर श्रादर की भावनाओं के साथ रासो को श्रपनाया तथा इसके
सहारे श्रपने काव्य को गौरवान्वित बनाने का प्रयल्न किया । रासो श्रपने युग
की प्रतिनिधि रचना है श्रौर तत्कालीन काव्य जगत में उसका सर्वोपरि स्थान
रहा होगा, इसमें लेशमात्र भी सदेद श्रपेक्षित नही है। रासो में राजपूत
सामती सभ्यता का जैसा निरूपण श्रौर निदर्शन हुआ्रा है वद्द अन्यत्र दुष्प्राप्य
है । चद की यह महान कृति समस्त वीर गाथा युग की सबसे श्रधिक महत्व
पूण रचना है । कनेल टॉड के शब्दों में तो “चद का ग्रन्थ अपने युग का पूर्ण
इतिहास है ।* यही कारण था कि राजस्थान के श्रनेक राजकुलो की ख्याति
और चशार्वालियों “रासो” के झाघार पर रची गई । स्वय कर्नल टॉड ने झपना
राजस्थान का इतिहास रासों की सहायता से लिखा है । फलतः रासो की प्रामा-
शिकता श्रौर अ्प्रामाणिकता के विवादग्रस्त विषय में ही उलभककर हम रासो
के काव्य सोन्दर्य श्रौर साहित्य मूल्याकण से श्रपने हिन्दी साहित्य को वचित
बनाकर बहुत बड़ी भूल कर रहे हैं । श्रावश्यकता तो इस बात की है कि
रासो की ऐतिहासिकता तथा श्रनेतिहासिकता को लेकर, बिद्दानो के निरर्थक
तक मथन द्वारा उत्पन्न फेनिल स्थिति से रासो को मुक्त करते हुये उसके
साहित्यिक रस का आ्रानन्द लें श्रौर उसके साहित्यक परीक्षण द्वारा हिन्दी भाषा
को गौरवशाली बनाएं ।'
प्रसिद्ध फ्रासीसी इतिहास वेत्ता गार्सी दि तासी के श्रनुसार इस कवि ने “जे
चन्द्र प्रकाश” या जयचन्द्र का इतिहास नामक एक श्र ग्रन्थ लिखा है जिसका
उल्लेख वाड मद्दोदय ने किया है । परन्तु स्वर्गीय सर एएच० इलियट का श्रनु-
मान है कि चद्र कृत जयचन्द्र प्रकाश कोई भिन्न ग्रन्थ नही है वरन् प्रथ्वी
राज चरित्र का कनौव्ज या कन्नौज खड भाग है जिसका अनुवाद कनेलटॉड
ने सगोप्तानेम” के नाम से ऐशियाटिक जर्नल मे प्रकाशित किया था । फलतः
रासो के रूप मे कवि का एक दी प्रामाणिक श्न्थ उपलब्ध है ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...