प्रारम्भिक अर्थशास्त्र | Prarambhik Arthshastra

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Prarambhik Arthshastra by नारायण अग्रवाल -Narayan Agrawal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शब्दों की परिभाषाये १ विपरीत सूय॑ का प्रकाश, हवा, चाँदनी आदि धन नहीं क्योंकि न तो यह विनिमय-साध्य हैं और न दुलभ ही ! घन के ठीक-ठीक झथ ससभाने के लिये यह आवश्यक है कि इसके जो तीन गुण हैं उनका अथ॑ भी समझ लिया जाय | उनका अथ नीचे बताया जाता है :-- उपयोगिता--उपयोगिता के अयथे हैं 'इच्छा पूरी करने की शक्ति ” थीदि किसी मनुष्य को एक वस्तु पाने की इच्छा है तो जैसे ही बह उस वस्तु को पा लेता हैं उसकी इच्छा पूरी हो जाती है और हम कहते हैं कि उस मनुष्य की इच्छा पूरी हो गई। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि वह वस्तु उपयोगी हे क्योंकि उसमें इच्छा पूरी करने की शक्ति है । थदि कोई वस्तु उपयोगी न हो तो उरू फोई भी मलुष्य पाने की इच्छा भी नहीं करेगा । वस्तुओं की मॉग इसीलिये होती हे क्योंकि बह शपयोगो होती हैं चिनिमं यसाध्यता--विनिमयसाध्यता के मानी है एक मनुष्य के अधिकार से दूसरे मनुष्य के अधिकार में जाने की चुमुत्र.- जिससे कि उस वस्तु का स्वामित्व बदल सके । यदि सनुष्य किसी बस्त को अपनी नहां चना सकता, तो बह उसके ऊपर कुछ भी सपया व्यय न करना चाहेगा । उदाहरण के किये मान लीजिये कि झाप एक किताब खरीदना चाहते हूँ । यदि प उस कितात्र को अपने पास नहीं रख सकते और अपनी सुविधा के अनुसार नहीं पढ़ सकते को स्पष्ट है आप उसके लिये कुछ भी व्यस* नहीं करेंगे । इसलिये ऐसी चस्वृणं जो विनिमय- साध्य नहीं हैं धन नहीं कददलाई जा सकतीं । सूर्य की रोशनी को




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