चिकित्सा पद्धति | Chikitsa Padati Part-II
श्रेणी : आयुर्वेद / Ayurveda, स्वास्थ्य / Health
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
24.38 MB
कुल पष्ठ :
646
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)३
१. कायिकः--कायिक वह रोग हैं जो मिध्याहार विहार आदि
कारणों से शरीर के चात, पित्त झादि दोपो मे न्यूनाधिकता होने से पंदा
होते हैं । मर
२. मानसिकः--मानासेक उन रोगों का नाम हे जिन में पहिले सन
मे किसी तरह का विकार पैदा होता और उस के कारण दोप कुपित होकर
शरीर श्र मन में रोग पेंदा कर देते है ।
हल ५ भा. ९. ५,
शरीरस्थ दोषों के भेद
वायुपित्ते कफश्चेति त्रयो दोषाः समासतः |
मनुष्य के शरीर में वात, पित्त और कफ यह तानो दोप व्याप्त हैं
इन पर ही मानव शरीर का आधार है ।
स्थ ७५ १५.
मनस्थ दोष के दो भेद
रजस्तमश्थ मनसो द्लौ च दोषा वुदाह्वतौ ।
रजेगगुण श्रौर तमोगुण की न्यूनाधिकता के कारण मन में विछकृति
छोने के उपरान्त वातादि ठोप कुपित होकर रोग उत्पन्न करते हे ।
#१९ अप, गा ग
शरीरस्थ बातादि दोषों के तीन नाम
शास्त्री में शरीर में विद्यमान चात, पित्त, कफ की तीन संज्ञा मानी हैं--
१. 'घातु, नर दोष, ३. मल ।
वायुः पित्त कफो दोपाः धातवश्च मलास्तथा ।
तत्रापि पश्चघा ख्याताः म्रत्येक॑ देदघारणात् ॥।
रसास्ड् मांस मेदो इस्थि मज्ञा शुक्ताणि सप्त घातवः |
सपत दूष्यो मलाः सूत्र-शकृत्सेदादयो दपि च ॥
शरोरस्थ चात, पित्त, कफ स्वाभाविक सात्रा में रह कर रस, राधिर,
संस, सेद, अस्थि, सजा और शुक्र इन सातों घातुझों का पोषण करते श्र
शरीर को भी पुष्ट करते हैं, इसालिए इनका नाम धातु है । इसी प्रकार यह
खीनों दोष विकृत होकर रसखादि धातुओं को दूषित करते है, इसलिए वात,
पित्त, कफ को दोष कहा जाता हे । विष्टा, सूत्र और पसीने झयादि के रूप में
ही क्योकि दोष (वात, पित्त, कफ) शर्रीर से निकलते हैं इसलिए इन को
अख भी कहते है ।
किया भेद से चात, पित्त, कफ इन तीनों के पांच भेद हैं। इन की
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