गल्प गुच्छ | Galp Guchchh
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
218
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्र गटप-रुच्छ
उपेन्द्र ने कद्दा--भ्राजकल के दिनों में किसी पर विश्वास
करने के जी नहीं चाहता । महेन्द्र मेरा फुफेरा भाई हे ।
उसी को इलाके का काम सोंपकर मैं निश्चिन्त था ।. मु
मालूम भी न हुआ कि कब मालयुज़ारों बाका करके नीलाम
कराकर उसने हासिलपुर गाँव खरीद लिया ।
नलिनी ने अ्रचरज के साथ कहा--ते! क्या तुम इसकी
कुछ तदबीर न करोगे ?
उपेन्द्र से कहा--क्या तदबीर करू ? तदबीर करने से
भी कुछ फल न होगा, कंवल घन नष्ट होगा ।
स्वामी की बात पर विश्वास करना नलिनी का परम
कतव्य है; किन्तु वह किसी तरद इस बात पर विश्वास न
कर सकी । उस समय से वद्द सुख की गूहस्थी, वह प्रेम
का जीवन एकाएक झटान्त विकट वीभत्स देख पड़ने लगा ।
जा घर उसे झपना परम झ्ाश्रय जान पड़ता था उसको उसने
एकाएक निठुर साथ का फन्दा समभझका--उसने उन दानों
भाई-बहनों को चारों ओर से घेर रक््खा है। वह अकेली
ख्री है, किस तरह झसदाय नीलमणि की रक्षा कर सकती
है। बहुत सोचने पर भी वह कुछ निश्चय स कर सकी ।
वह जितना दी सोचती थी उतना दही डर और घृणा के साथ
ही चिपन्न बालक माई के प्रति झसीम स्नेह से उसका हृदय
परिपूथ देता जाता था । वह मन में सेचने लगी कि मैं श्रगर
उपाय जानती ता लाट साइब के पास झर्ज़ी देकर, मद्दाराज
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