गल्प गुच्छ | Galp Guchchh

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Galp Guchchh  by रविंद्रनाथ ठाकुर - Ravindra Thakur

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रवीन्द्रनाथ टैगोर - Ravindranath Tagore

Add Infomation AboutRAVINDRANATH TAGORE

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
श्र गटप-रुच्छ उपेन्द्र ने कद्दा--भ्राजकल के दिनों में किसी पर विश्वास करने के जी नहीं चाहता । महेन्द्र मेरा फुफेरा भाई हे । उसी को इलाके का काम सोंपकर मैं निश्चिन्त था ।. मु मालूम भी न हुआ कि कब मालयुज़ारों बाका करके नीलाम कराकर उसने हासिलपुर गाँव खरीद लिया । नलिनी ने अ्रचरज के साथ कहा--ते! क्‍या तुम इसकी कुछ तदबीर न करोगे ? उपेन्द्र से कहा--क्या तदबीर करू ? तदबीर करने से भी कुछ फल न होगा, कंवल घन नष्ट होगा । स्वामी की बात पर विश्वास करना नलिनी का परम कतव्य है; किन्तु वह किसी तरद इस बात पर विश्वास न कर सकी । उस समय से वद्द सुख की गूहस्थी, वह प्रेम का जीवन एकाएक झटान्त विकट वीभत्स देख पड़ने लगा । जा घर उसे झपना परम झ्ाश्रय जान पड़ता था उसको उसने एकाएक निठुर साथ का फन्दा समभझका--उसने उन दानों भाई-बहनों को चारों ओर से घेर रक्‍्खा है। वह अकेली ख्री है, किस तरह झसदाय नीलमणि की रक्षा कर सकती है। बहुत सोचने पर भी वह कुछ निश्चय स कर सकी । वह जितना दी सोचती थी उतना दही डर और घृणा के साथ ही चिपन्न बालक माई के प्रति झसीम स्नेह से उसका हृदय परिपूथ देता जाता था । वह मन में सेचने लगी कि मैं श्रगर उपाय जानती ता लाट साइब के पास झर्ज़ी देकर, मद्दाराज




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now