कविवर पन्त और उनका आधुनिक कवि | Kavivar Pant Aur Unaka Aadhunik Kavi
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
323
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about रामरजपाल द्विवेदी - Ramarajapal Dvivedi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)द हू:
जीवन-रेखा
आखिर हमें पंत कवि से काम है, पंत व्यक्ति से नहीं, फिर हमें उनकी जीवन-
रेखा क्यों निहारनी है ? नहीं--ऐसी बात नहीं । कवि भी तो मानव है । उसका
भी तो जीवन है--ग्रौर उसके जीवन की सरल-वक्र लकीरे उसकी रचनाग्ों में
श्राप ही उभर श्राती हू । यही कारण है कि प्रत्येक कवि की रचनाओ्रों की पृष्ठभूमि
में उसके जीवन के विविध दृ्यो का पर्दा पड़ा रहता है । यदि किसी प्रकार इस परदे
का रॉग धुल जाय या धूमिल हो जाय तो भविष्य का पाठक उन रंगों को पहचानने
के लिए श्रपने पसीने की चिर्ता नहीं करता । शेक्सपीयर, कालिदास, तुलसी प्रभूति
महान कवियों की जीवन सबंधी खोजे भ्राज भी जारी हे । भरत: पंत के--किसी
भी कवि के--काव्य पर निगाह दौड़ाने से पूव॑ उनके जीवन की भाँकी कर लेना
ग्रत्यंत समी चीन है ।
भ्रल्मोड़ा से ३२ मील उत्तर की ऑ्रोर, सम द्रतल से श्राठ हजार फोट की ऊंचाई
पर प्रकृति से ग्राँख मिचौनी खेलता हुम्रा एक गाँव है कौसानी । इसी गाँव में सन
१९०० की २० वी मई (ज्येष्ठ कृष्ण ८ संवृत १६५७) को सुमित्रानंदन पंत ने
्रपने दिश नयन उधघारे । उस समय तक महार्कावि प्रसाद दस, निराला चार एवं
प्रेमचंद बीस वसंत निहार चके थ । इनको माता का नाम श्रीमती सरस्वती देवी
एवं पिता का नाम पं ० गंगादत्त पत था । वे धनी जमींदार एवं कौसानी राज्य के
कोषाध्यक्ष थे । बड़े जमीदार एवं पुष्कल धन--फिर भी वे बड़े सीधे सादे व्यक्ति
थे। सुख में सुमिरन करने वाले वही थे। प्रात: बेला में वे घण्टों ध्यानावस्थित
रहते । भला ऐसे वातावरण से शिशु सुमित्रानन्दन--जो उन दिनों गुसाईदत्त के
रूप मे भ्रपने पिता की सबसे छोटी सतान था--अ्रछता रह जाता ? पर ऐसी सुख-
ज्योति में भी दुर्भाग्य के तमस ने श्रपना चिह्न छोड़ ही दिया--म्ौर वह था इनके
जन्मोपरांत ही स्वर्गादपि गरीयसी जननी का स्वर्गारोहण । बालक पंत भविष्य में
विलख उठा, “में सोचने लगा यदि वह माँ श्राज जीवित होती तो कितनी प्रसन्न
होती । कितने दुख की बात है कि वह सरस्वतो श्रपनो श्राँखों से इतना न देख
पाई कि ज़नका पुत्र सरस्वती की श्राराघना करके कसा यशस्वी बनेगा ।” अपनी
माँ की पुनीत स्मृति को उन्होंने बड़ा सँभाल कर रखा । “वीणा' की ,कितनी ही
कविताओ्ों में ममता मय 'माँ' दब्द बिखरा पड़ा है । माँ-गण-गान कई कविताग्ों
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