कविवर पन्त और उनका आधुनिक कवि | Kavivar Pant Aur Unaka Aadhunik Kavi

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Kavivar Pant Aur Unaka Aadhunik Kavi by रामरजपाल द्विवेदी - Ramarajapal Dvivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द हू: जीवन-रेखा आखिर हमें पंत कवि से काम है, पंत व्यक्ति से नहीं, फिर हमें उनकी जीवन- रेखा क्यों निहारनी है ? नहीं--ऐसी बात नहीं । कवि भी तो मानव है । उसका भी तो जीवन है--ग्रौर उसके जीवन की सरल-वक्र लकीरे उसकी रचनाग्ों में श्राप ही उभर श्राती हू । यही कारण है कि प्रत्येक कवि की रचनाओ्रों की पृष्ठभूमि में उसके जीवन के विविध दृ्यो का पर्दा पड़ा रहता है । यदि किसी प्रकार इस परदे का रॉग धुल जाय या धूमिल हो जाय तो भविष्य का पाठक उन रंगों को पहचानने के लिए श्रपने पसीने की चिर्ता नहीं करता । शेक्सपीयर, कालिदास, तुलसी प्रभूति महान कवियों की जीवन सबंधी खोजे भ्राज भी जारी हे । भरत: पंत के--किसी भी कवि के--काव्य पर निगाह दौड़ाने से पूव॑ उनके जीवन की भाँकी कर लेना ग्रत्यंत समी चीन है । भ्रल्मोड़ा से ३२ मील उत्तर की ऑ्रोर, सम द्रतल से श्राठ हजार फोट की ऊंचाई पर प्रकृति से ग्राँख मिचौनी खेलता हुम्रा एक गाँव है कौसानी । इसी गाँव में सन १९०० की २० वी मई (ज्येष्ठ कृष्ण ८ संवृत १६५७) को सुमित्रानंदन पंत ने ्रपने दिश नयन उधघारे । उस समय तक महार्कावि प्रसाद दस, निराला चार एवं प्रेमचंद बीस वसंत निहार चके थ । इनको माता का नाम श्रीमती सरस्वती देवी एवं पिता का नाम पं ० गंगादत्त पत था । वे धनी जमींदार एवं कौसानी राज्य के कोषाध्यक्ष थे । बड़े जमीदार एवं पुष्कल धन--फिर भी वे बड़े सीधे सादे व्यक्ति थे। सुख में सुमिरन करने वाले वही थे। प्रात: बेला में वे घण्टों ध्यानावस्थित रहते । भला ऐसे वातावरण से शिशु सुमित्रानन्दन--जो उन दिनों गुसाईदत्त के रूप मे भ्रपने पिता की सबसे छोटी सतान था--अ्रछता रह जाता ? पर ऐसी सुख- ज्योति में भी दुर्भाग्य के तमस ने श्रपना चिह्न छोड़ ही दिया--म्ौर वह था इनके जन्मोपरांत ही स्वर्गादपि गरीयसी जननी का स्वर्गारोहण । बालक पंत भविष्य में विलख उठा, “में सोचने लगा यदि वह माँ श्राज जीवित होती तो कितनी प्रसन्न होती । कितने दुख की बात है कि वह सरस्वतो श्रपनो श्राँखों से इतना न देख पाई कि ज़नका पुत्र सरस्वती की श्राराघना करके कसा यशस्वी बनेगा ।” अपनी माँ की पुनीत स्मृति को उन्होंने बड़ा सँभाल कर रखा । “वीणा' की ,कितनी ही कविताओ्ों में ममता मय 'माँ' दब्द बिखरा पड़ा है । माँ-गण-गान कई कविताग्ों




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