विज्ञान | Vijnana
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
37
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अगस्त 1991 विज्ञान 13
लाइकेन की बद्धि बहुत धीरे-धीरे होती है । कुछ लाइकेन प्रति वर्ष 1 मि० सी० की दर से बढ़ते हैं तो
कुछ दूसरे 4 से० मी ० प्रति वर्ष की दर से । इसका कारण यह है कि लाइकेन को वातावरण की अनुकूलतम दशायें
बहुत कम समय के लिये ही मिलती हैं । अत्यधिक आद्रंता, कम तापक्रम तथा मद्धिम प्रकाश लाइकेन की ब्रद्धि के लिये
उपयुक्त होता है । लाइकेन में पानी का संरक्षण करने की कोई विशेष विधि नहीं होती । पानी उपलब्ध होने पर
लाइकेन पानी को (100 से 300 प्रतिशत तक) शोधषित कर लेते हैं ।
प्रमुखतया लाइकेन को तीन समूहों में बाँटा जा सकता है, क्रस्टोज, फॉलियोज और फ्रूटीकोज ((0०५६056,
छ०]056, कापधघ0056) |. इनका आकार बहुत छोटा होता है, लेकिन कभी-कभी ये कई मीटर लम्बे हो सकते हैं ।
लाइकेन आधार से धागे के आकार की संरचनाओं द्वारा जुड़े रहते हैं जिन्हें राहिजीन्स (8२७ 12065) कहते हैं ।
लाइकेन्स में नील-हरित शैवाल (0५० 9प्र०७४८) जैसे ग्लिओकंप्सा (५16008%88), नॉस्टाक (ऐय०5६०0) ,
रिबुलेरिया (कसंप्पांकांव), . स्टीगोनेमा (8168006ा08), हरित शैवाल (ए10700996686), जैसे टेबॉक्सिया
(पुष८0०पशंश), क्लोरेला ((फ10768), पामेला (?10त18), ट्रेन्टीपोलिया (कप८०0०012) एवं कुछ पीत-हरित
शेवाल (एए80000ए0फ90०686) पाये जाते हैं। लाइकेन में पाये जाने वाले कवक डिस्कोमाइसीटीस, पाइरेनोमाइसीटी स,
बेसीडियोमाइसी टीस (01500 फ़ाए०665, रिप्राटाणा।ए06165, 9885ती000प्र०5/65) वर्ग के होते हैं ।
(2) पौधा जो डोडो के साथ समाप्त होते-होते बचा
डोडो (00760, एंतघ5 कृष्ण) नाम है उस विशाल व न उड़ने बाले पक्षी का जो हिन्द महासागर के
मारीशस नामक देश में बहुतायत से पाया जाता था । यह एक बडे कबुतर के समान पक्षी था जिसकी ऊँचाई 90
सेमी० और वजन 15 किलो था । युरोपियन निवासियों ने इसके मांस को बहुत स्वादिष्ट बताया और थोड़े ही समय
में यह चिड़िया और इसके छोटे-छोटे बच्चे समाप्त होने लगे । इसके मारीशस में देखे जाने की आखिरी रिपोर्ट 168 1
में मिली थी 1
इस पक्षी के विलुप्त होने के साथ ही एक बहुत सुन्दर ब्रुक्ष कालबेरिया (081#8708 प्राकं00) के समाप्त होने
की सम्भावना हुई, क्योंकि इसके बीजों के ऊपर मोटा छिलका होता है और वे तभी उगते हैं: जबकि वे ढोडो के आहार
नाल या गिजाडें (टाटा) से कुचलकर और उपचारित होकर बाहर आते हैं। आज मारीशस में इस किस्म के
मात्र 13 व्रक्ष हैं जो कि 300 से अधिक वर्ष पुराने हैं । सौभाग्य से विसकोंसिन विश्वविद्यालय; अमेरिका के पक्षी
वैज्ञानिक डॉ० एस० ए० टेस्पल ने टर्की को डोडो की जगह प्रयुक्त किया» जिसके गिजाडेँ में उसी प्रकार के पत्थर पाये
जाते हैं जैसे कि डोडो के गिजाई में । इस विधि से टेम्पल ने तीन बीजों को उगाकर यह निराशा दुर कर दी है कि
डोडो के विलुप्त होने से यह ब्रक्ष भी संसार से चला जायेगा ।
(3) प्लास्टिक का हवाई जहाज
जर्मनी के एक हवाई जहाज इन्जीनियर हास्ट रसमेयर (०5६ हि०४८0ाए८ए८) ने एक शर्क्तिशाली
प्लास्टिक का हवाई जहाज बनाया है, जिसका नाम है “रसमेयर एम० एफ०-85' । यह पायलेट के अतिरिक्त तीन
यात्रियों को ले जा सकता है । प्लास्टिक पदार्थ का नाम है विनाइलइस्टर रेजिन--जो कि धातु के स्थान पर वायुयानों
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