विज्ञान | Vigyan

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Vigyan  by प्रेमचन्द्र श्रीवास्तव - Premchandra Srivastav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तवम्बर 1991 विज्ञान 13 प्रकाशित हुए हैं । मुद्रा के सम्बन्ध में काशी के श्री दुर्गाप्रसाद जी का भी अच्छा नाम है, और एक सज्जन श्री पुरुषोत्तम जी भी हैं* जिनकी युवा काल से इस विषय में रुचि रही है । डॉ० बीरबल साहनी का मुद्रा ढालने के साँचों के सम्बन्ध में 68 पृष्ठों का विस्तृत लेख “मेम्वायसें ऑँव त्यूमेस्मेटिक सोसायटी ऑँव इण्डिया के पहले अंक में 1945 में प्रकाशित हुआ था । प्रो० बीरबल साहनी के इस लेख को मैंने अपने प्रसिद्ध ग्रस्थ “'क्वायनेज इन एनसियेण्ट इण्डिया” में उद्धृत किया है । यह लेख सचित्न भौर अत्यन्त विस्तृत है। बीरबल साहनी जी के दिये हुक इसमें यथारूप सत्तरह चित्र हैं। मेरी पुस्तक में यह अध्याय (लेख ) 37 पृष्ठों में हैं और साहनी जी का नामोल्लेख लगभग हर पृष्ठ पर है । मेरे लेख के अन्तिम भाग में जो पैराग्राफ है वह बताता है कि डॉ० बीरबल साहनी की इस खोज की प्रथम घोषणा आकियोलॉजिकल डिपार्टमेंट ने हैदराबाद में अपने वाधिक अधिवेशन में की थी । यह पैराग्राफ महत्वपूर्ण है अत: इसे में अपनी पुस्तक से उद्धृत कर रहा हूँ *धुफ़६५6 ए0०00ण108 06108 10 फि 80006 प0ता8. हूं. हि. .काए26 20100प्र7060 फ6ा1 ती300४टाफ 1 106 ै00प8 ८१011 0 016 0०086010छ्टां81 9८081पघए0671 0 006 अधा 0. पफतदा8080, 6००80 (1936-37), का ए6 ए10प165 फ्रटा6 2150 6हिणि ते 8: घि6 ठत्एए8ा ८०0 0 फिड पाएं 300ंठप 0 पता, 616 81 व प्$8076 10 1935, पक घिटण ए65 प806 पद ५6. ए11886 0 20 81 (16712' ९, 76४8) ता8010860 घपिाएघ८65, 88.8 00 घ511-00पद65 85. फर&॥ 85 00060 फा०0०6५ 0 (6ा8-0018. त्100105 घ00 ८णंघ8 0 प्राफ़ृपणा5966 प8प6165... जं०6 फिट 16860 18 10 ५96 पका 8001, ५6 ०008 06100 (0 प6 119) 10 141 ८ एए४ 2. (. 051 0 906 ०णं॥5 फ़दा6 छिपाए6 'ए 850 (एप 81008 गाए (हा 0100105, १८६८ ए00ण105 816 ८00 218घिए८1५ 0 एपर्टा। 76061 0816. साहनी साहब के लिखे हुए मेक्वायर में निम्न ग्यारह स्थलों का उल्लेख है, जहाँ से डॉ० साहनी ज अपनी सामग्री संकलित किया--1. ईरान से प्राप्त ईसा से पुवे तृतीय शती की काँसे का एक साँचा, 2. ईसा से 100 वर्ष पुवे के रोहतक में प्राप्त साँचे, 3. ईसा से पत्द्रह सो वर्ष पहले तक्षशिला से प्राप्त साँचे, 4. मथुरा के साँचे जो ईसा के बाद एक या दो शतती के हैं, 5. पश्चिमी छत्तप वंश के साँची के कतिपय साँचे जो लगभग ईसा पूर्व 150-3858 ई० के हैं, 7. कोण्डा से प्राप्त साँचे (पंचमाकं) आन्श्र और जत्नप सिक्के, 8. सुनिति साँचे जो द्वितीय शती के कुषाण के बाद के और गुप्त काल के पूरे के हैं, 9. गुप्तकालीन 500-550 ए० सी० नालन्दा साचे, जयगुप्त 625-675 ए० सी ० साँचें, 10. काशी साँचे, द्वितीय चन्द्रगुप्त के काल के 375-417 ए० सी० तक और 11. कडकाल साँचे ग्याहरह से चौदहू शती ई० | क मेरा पाठकों से आग्रह है कि डॉ० बीरबल साहनी के इस विस्तृत लेख के सम्बन्ध में श्री उपेन्द्र ठाकुर का शोध पत्र भी अवश्य पढ़ें जो 'जनेल आऑँव न्यूमिसमेटिक सोसायटी आँव इण्डिया' में 196! में छपा हुआ है । डॉ० बीरबल साहनी का सन्‌ 1949 में हृदयगति अवरोध से सहसा देहावसान हो गया । उनकी भायु उस समय 58 वर्ष की थी । मु्ते याद है कि देहावसान का. समाचार कानपुर में हम लोगों को प्राप्त हुआ था । साइंस रिसचें कमेटी की अध्यक्षता के लिए डॉ० के० एस० कृष्णन दिल्‍ली से भाये थे । श्री पद्यपत सिहानिया के हम लोग मेहमान थे । डॉ० कृष्णन उनकी मृत्यु का समाचार पाकर लखनऊ चले गये थे । यह है एक छोटी सी कहानी जिसे मैं डॉ० साहनी की जन्मशती के अवसर पर अपने पाठकों को भेंट कर रहा हूँ । का




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