अनुकम्पा | Anukampa

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Anukampa by रतनचन्द चौपड़ा - Ratanchand Chaupada

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छनुफम्पा पक के __._ दिन उर्क्यूक्त पांच प्रकार के स्थावर जोव बड़े छोटे हैं । 1 दस इनके दुः्व का आभास बन्दन या अश्रुपात ते कारण है कि इनकी व्यथा को गदराई भो दम ये। पर कया किसो को मूफ पोड़! का उपदास करना एक अन्वे, गूंगे ओर यदरे मनप्य को कप्ट देना नहीं माना जायेगा कि वह दुःख प्रकाश नद्दों कर एखिद कदना पड़ता है कि जेनेतर तो कया स्वयमू जन भी कई एक ने श्रम में पड़ कर इन निरीद्द प्राणियों की शास्त्री के भावों की अवहेलना की दै। उपदेश दिये पुष्य, ज्ञो जीव जयत्‌ का मुकुट हे, फो सुख प्ृद्धि के छिये का इनन अपराध रहित है। ऐसो प्ररुपणा मानव * उता का सहारा पाकर सूखे बन में ठगी आग को तरद ऐसी मान्यत्ता को जड़ मजबूत करने के लिये भावुकता का लिया जाता दे। प्रश्न उठाया जाता हे कि तपातुर को प कराना या छुध। संतप्त की छुधा न मेटना कितना बड़ा प। ऐसा न करना दया की विरड्रना दोगी |. ऐसी भावुकता * ये ढेने के पदठे ये आसानो से भुढा देना चादते ईैं कि एक तुट्टि के डिये कितने जोवों की घात द्ोगो। इस सम्दन्व में , इष्टिकोण की न्याययरायगता हमारे सम्पूग विवेचन पर ध्यान, अवश्य स्पष्ट दो जायेगी। पाप करते हुए भो पाप को पाप पा उससे बचने फे िये सब प्रथम झावश्यक है। खून के प्फ़के.. नांख मंद कर दूध के फेर में पोते जाने के चनिस्वत 7 को जानने से दी एक दिन छूणा होने पर बह हगा | पक




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